कैसे पढ़ा-लिखा खुद को बतलाऊँ
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अतुकांत कविता -मेरे अंतस में
दीप पर्व की शुभकामनाएं
धनतेरस (कुण्डलियां छंद)
आयुष प्रभु धनवंतरी, हमें दीजिए स्वास्थ्य ।
आज जन्मदिन आपका, दिवस परम परमार्थ ।।
दिवस परम परमार्थ, पर्व यह धनतेरस का ।
असली धन स्वास्थ्य, दीजिए वर सेहत का ।।
धन से बड़ा "रमेश", स्वास्थ्य पावन पीयुष ।
आयुर्वेद का पर्व, आज बांटे हैं आयुष ।।
दीप (रूपमाला छंद)
दीप की शुभ ज्योति पावन, पाप तम को मेट ।
अंधियारा को हरे है, ज्यों करे आखेट ।
ज्ञान लौ से दीप्त होकर, ही करे आलोक ।
आत्म आत्मा प्राण प्राणी, एक सम भूलोक ।।
-रमेश चौहान
चिंतन के दोहे
शांत हुई ज्योति घट में, रहा न दीपक नाम ।
अमर तत्व निज पथ चला, अमर तत्व से काम ।।
धर्म कर्म धर्म, कर्म का सार है, कर्म धर्म का सार ।
करें मृत्यु पर्यन्त जग, धर्म-कर्म से प्यार ।।
दुनिया भर के ज्ञान से, मिलें नहीं संस्कार ।
अपने भीतर से जगे, मानवता उपकार ।।
डाली वह जिस पेड़ की, उससे उसकी बैर ।
लहरायेगी कब तलक, कबतक उसकी खैर ।
जाति मिटाने देश में, अजब विरोधाभास ।
जाति जाति के संगठन, करते पृथ्क विलास ।।
सकरी गलियां देखकर, शपथ लीजिये एक ।
बेजाकब्जा छोड़कर, काम करेंगे नेक ।।
शिक्षक निजि स्कूल का, दीन-हीन है आज ।
भूखमरी की राह पर, चले चले चुपचाप ।।
हम मजदूर
दम्भ चीन का आज बढ़ा है (आल्हा छंद)
आल्हा छंद
रस छंद अलंकार
/रस/
पढ़न श्रवण या दरश से, मिलते जो आनंद ।
नाम उसी का रस कहे, काव्य मनीषी चंद ।।
/छंद/
यति गति तुक जिस काव्य में, अरु हो मात्रा भार ।
अथवा मात्रा भार हो, बनते छंद विचार ।
/अलंकार/
आभूषण जो काव्य का, अलंकार है नाम ।
वर्ण शब्द अरु अर्थ से, काव्य सजाना काम ।।
-रमेश चौहान
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