‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

दोहे

पेड़ मूल को छोड़कर , जीवित रह न पाय । जुड़कर अपनी मूल से, लहर-लहर लहराय ।। अमरबेल जो चूसता, अन्य पेड़ का रक्त . । जितना चाहे फैल ले, पर हो सके न सख्त ।। बड़े हुए नाखून को, ज्यों काटे हो आप । बुरी सोच भी काटिये, जो वैचारिक ताप ।। रूप सजाने आप ज्यों, करते लाख उपाय । सोच सजाने भी करें, कछुक जतन मन भाय ।...

चलो नई शुरुआत करें

चलो नई शुरुआत करें हम ।  गम को तज मन खुशी भरें हम चलिए बाधा दौड़ लगाएं । हर बाधा को धूल चटाएं संघर्ष विहिन जीवन  कैसा । पथ पर पाहन जड़वत जैसा छल-छल कल-कल नदियां बहती । क्या वह कोई बाधा ना सहती ज्ञानवान हो बुद्धिमान हो । हे मानव तुम तो सुजान हो घोर निशा में दीप जलाए । तुमने ही तम घोर भगाए जीवन बाधा से क्यों घबराएं । समय बिते पर ...

दोहे- सुबह सवेरे जागिए

सुबह सवेरे जागिए, जब जागे हैं भोर । समय अमृतवेला मानिए, जिसके लाभ न थोर ।। जब पुरवाही बह रही, शीतल मंद सुगंध । निश्चित ही अनमोल है, रहिए ना मतिमंद ।। दिनकर की पहली किरण, रखता तुझे निरोग । सूर्य दरश तो कीजिए, तज कर बिस्तर भोग ।। दीर्घ आयु यह बांटता,  काया रखे निरोग । जागो जागो मित्रवर, तज कर मन की छोभ ।...

चौहान के दोहे

समय बड़ा बलवान है,  भाग्य समय का खेल ।बुरे समय में धैर्य से, होवे सुख से मेल ।।दुनिया प्यासी प्रेम का, प्रेम सुधा तू बाॅट ।थोथा थोथा फेक दे, ठोस बीज ले छाॅट ।।कर्म बड़ा है भाग्य से,  करें कर्म का मोल ।ढोलक बोले थाप से,  बोल सके न खोल...

प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये

प्रियसी प्रियतम हे प्राण प्रिये, तुमसे जीवन मेरा । वाह्य देह को क्या देखूँ मैं, निर्मल मन है तेरा ।। गंगा जल भी दूषित अब है, पर तू अब भी पावन । मेरे कष्टों को धो देती , ज्यों तू पाप नशावन ।। डगर दुखों की रोक रखी तू, जो छूना चाहे मुझको । सुख की तू तो जागृत प्रतिमा, सुख ही मानूँ तुझको ।। सुख का साथी लोग सभी हैं, तू तो दुख की साथी । दुख से भय ना मुझको...

जीवन एक संघर्ष है -"लड़ना मुझको यार' (सार छंद)

स्मरण सदन का खोल झरोखा, देखा ॴॅख प्रसार । क्या कुछ मैंने  खोया पाया, करता रहा विचार ।। बरखा सर्दी बसंत पतझड़, मौसम का सौगात । दिन का चढ़ना और उतरना, सुबह शाम अरु रात ।। कई बार बदली घिर आया, छुपे न मन का ओज । घूप अंधियारी में भी वह, किया खुशी का खोज ।। क्या खोना है क्या पाना है,  सुख दुख का ये मेल । कभी भाग्य पर दांव कर्म का, रहा खेलता...

पहेलियां -बूझों तो जानें

1- पीछा करता कौन वह, जब हों आप प्रकाश । तम से जो भय खात है, आय न तुहरे पास ।। 2- श्वेत बदन अरु शंकु सा, हरे रंग की पूंछ । सेहत रक्षक शाक है, सखा पहेली बूझ । 3- काष्ठ नहीं पर पेड़ हूँ, बूझो मेरा नाम । मेरे फल पत्ते सभी, आते पूजन काम ।। 4- बाहर से मैं सख्त हूँ, अंतः मुलायम खोल । फल मैं ऊँचे पेड़ का, खोलो मेरी पोल ।। 5- कान पकड़ कर...

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