जागृत परमात्मा, जग की आत्मा, ज्योति रूप में, रचे बसे ।
अंतरिक्ष शासक, निश्श विनाशक, दिनकर भास्कर, कहे जिसे ।।
अविचल पथ गामी, आभा स्वामी, जीवन लक्षण, नित्य रचे ।
जग जीवन दाता, सृष्टि विधाता, गतिवत शाश्वत, सूर्य जचे ।।
विज्ञानी कहते, सूरज रहते, सभी ग्रहों के, मध्य अड़े ।
सूर्य एक है तारा, हर ग्रह को प्यारा, जो सबको है, दीप्त करे ।।
नाभी पर जिनके, हिलियम मिलके, ऊर्जा गढ़कर, शक्ति भरे ।
जिसके ही बल पर, ग्रह के तम पर, अपनी आभा, नित्य करे ।।
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मौलिक अप्रकाशित