‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

गीत

सेठों को देखा नही, हमने किसी कतार में   फुदक-फुदक कर यहां-वहां जब चिड़िया तिनका जोड़े बाज झपट्टा मार-मार कर उनकी आशा तोड़े   जीवन जीना है कठिन, दुनिया के दुस्वार में   जहां आम जन चप्पल घिसते दफ्तर-दफ्तर मारे । काम एक भी सधा नही है रूके हुयें हैं सारे   कौन कहे कुछ बात है, दफ्तर उनके द्वार म...

पंक्ति एक जीवन है

पंक्ति एक जीवन है साथी पंक्ति एक जीवन है । निर्धन यहाँ पंक्ति का कैदी, धरती का ठीवन है ।। दो जून पेट का ही भरना, दीनों का तीवन है । आजीविका ढूंढते यौवन, शिक्षा का सीवन है ।। यक्ष प्रश्न आज पूछथे क्यों, धन बिन क्या जीवन है । आँख मूंद कर बैठे रहना, राजा का खीवन है ।। ---------------------- (ठीवन-थूक, तीवन-पकवान, सीवन-सिलाई, खीवन-मतवालापन) पंक्ति...

एक ही है धर्म जग में

एक ही है धर्म जग में,  जीवन कला सकाम एक ईश्वर सृष्टि कारी प्रति कण बसे अनाम । आदमी में भेद कैसा,  प्राणी एक समान । करे पूजा भले कोई, चाहे करे अजान...

प्यार होता कहां अंधा

प्यार होता कहां अंधा, जाने नही जवान । कौन माँ को देख कर के,  आया गर्भ जहान । छांटते फिर रहे प्रियसी, जस एक परिधान । साथ रहकर किसी से भी, करते प्रेम महान ...

गीता ज्ञान

शोभन मौत सदा सच है फिर भी, डरे क्यों मन प्राण । जीवन जीने का होता, उसे क्यों अभियान ।। कर्म सार है जीवन का, बांटे कृष्ण ज्ञान । मानवता एक धर्म ही, इसका सार जान ...

यही सत्य ही सत्य है

मानों या न मानो यारों यही सत्य ही सत्य है केवल प्यार ही प्यार है प्यार देखता नही कभी मजहब न लड़का न लड़की समझे इसका मतलब प्यार लिंग भेद में है नही यह तो वासना है यारों कभी किसी ने सोचा है केवल युवक और युवती क्यों करते फिरते रहते प्यार, प्यार इस जगती प्यार कैद में होता नही यह तो स्वार्थ है यारों प्यार के दुहाई देने वाले जग के प्यार भूल बैठे हैं जनक...

प्रदूषण

प्रकृति और मानव में मचा हुआ क्यों होड़ है धरती अम्बर मातु-पिता बन जब करते रखवारी हाड़-मांस का यह पुतला तब बनती देह हमारी मानव मन में जन्म से वायु-धूल का जोड़ है मानव मस्तिष्क नवाचारी नित नूतन पथ गढ़ता अपनी सारी सोच वही फिर गगन धरा पर मढ़ता ऐसी सारी सोच की अभी नही तो तोड़ है माँ के आँचल दाग मले वह शान दिखा कर झूठे अपने मुख पर कालिख पाकर पिता पुत्र...

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