‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

अविचल अविरल है समय

अविचल अविरल है समय, प्रतिपल शाश्वत सत्य । दृष्टा प्रहरी वह सजग, हर सुख-दुख में रत्य ।। पराभाव जाने नही, रचे साक्ष्य इतिहास । जीत हार के द्वंद में, रहे निर्लिप्त खास ।। जड़ चेतन हर जीव में, जिसका है वैतत्य ।। अविचल अविरल है समय... (वैतत्य-विस्तार) चाहे ठहरे सूर्य नभ, चाहे ठहरे श्वास । उथल-पुथल हो सृष्टि में, चाहे होय विनाश ।। इनकी गति चलती सहज, होते...

अपना शिक्षा तंत्र (शिक्षक दिवस पर)

पीडि़त असाध्य रोग से, अपना शिक्षा तंत्र । इसकी चिंता है किसे, अपना देश सुतंत्र ।। हुये नही प्रयोग यहाॅं, जितने की विज्ञान । शिक्षा शास्त्री कर चुके, उससे अधिक निदान ।। लगे पाक शाला यहां, सब सरकारी स्कूल । अक्षर वाचन छोड़ के, खाने में मशगूल ।। कागज के घोड़े यहाॅं, दौड़े सरपट भाग । आॅफिर आॅफिस दौड़ के, जगा रहे अनुराम ।। बिना परीक्षा पास सब, ऐसी...

वर्ण पिरामिड-2

  ये    मन   चंचल  है चाहता तन छोड़ना जैसे पत्ते डाल, छोड़ कर भागता । ...

वर्ण पिरामिड -1

          जो  पत्ते बिखरे डाल छोड़े हवा उड़ाये      बरखा भिगाये    धूल मिट्टी सड़ाये ।। ...

हे मनमोहना

ले मुख बासुरी हो सम्मुख मनमोहना देकर सुख हर लीजिये दुख ।। .......................... हो तुम हमारे सर्वस्व ही अर्पण तुम्हें तन मन धन गुण अवगुण सारे ।। ...

अष्ट दोहे

1 रोटी में होेते नहीं, ढूंढे जो तुम स्वाद । होय स्वाद तो भूख में, दिखे नही अपवाद ।। 2 बातें तो हम हैं करें, करें कहां है काम । बैठे बैठे चाहते, जग में होवे नाम ।। 3 ज्ञानी हम सब आज है, अज्ञानी ना कोय । ज्ञान खजाना हाथ में, फिर भी काहे रोय ।। 4 चिडि़यां बुनती घोसला, तिनका तिनका जोर । दुर्बल हो काया भले, मन कोे रखे सजोर ।। 5 चिटी चढ़े दीवार पर,...

कुछ दोहे

कल की बातें छोड़ दे, बीत गया सो बीत । बीते दिन बहुरे नहीं, यही जगत की रीत ।। चले चलो निज राह तू, करना नही विश्राम । तेरी मंजिल दूर है, रखो काम से काम ।। जीत हार में एक ही, अंतर होते सार । मंजिल पाना सार है, बाकी सब बेकार ।। जान बूझ कर लोग क्यूं, चल पड़ते उस राह । तन मन करते खाक जो, करके उसकी चाह ।।  जग में भागम भाग है, भागें हैं हर कोय । कोई...

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