पेड़ मूल को छोड़कर , जीवित रह न पाय ।
जुड़कर अपनी मूल से, लहर-लहर लहराय ।।
अमरबेल जो चूसता, अन्य पेड़ का रक्त . ।
जितना चाहे फैल ले, पर हो सके न सख्त ।।
बड़े हुए नाखून को, ज्यों काटे हो आप ।
बुरी सोच भी काटिये, जो वैचारिक ताप ।।
रूप सजाने आप ज्यों, करते लाख उपाय ।
सोच सजाने भी करें, कछुक जतन मन भाय ।।