‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है,

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है, पैरों का छिलना बाकी है जीवन एक दुश्कर पगडंडी सम्हल-सम्हल कर चलने पर भी जहां खरोच आना बाकी है चिकनी सड़क पर हमराही बहुत है कटिले पथ पर पथ ही साथी जहां खुद का आना बाकी है चाहे हँस कर चलें हम चाहे रो कर चलें हम चलते-चलते गिरना गिर-गिर कर सम्हलना यही जीवन का झांकी...

समरसता यदि चाहिये

समरसता यदि चाहिये, करना होगा काम । हर सरकारी काम में, पूछे न जाति नाम ।। पूछे न जाति नाम, राजनैतिक दल धारक। नेता अरू सरकार, जाति के निश्चित कारक ।। बोले केवल हिन्द, हिन्द यदि दिल में बसता । दिवस नही फिर दूर, यहां हो जब समरसता ।। ...

एक अकेले

एक अकेले जूझिये, चाहे जो कुछ होय । समय बुरा जब होत है, बुरा लगे हर कोय । बुरा लगे हर कोय, साथ ना कोई देते । तब ईश्वर भी स्वयं, परीक्षा दुश्कर लेते ।। छोड़ें देना दोष,  जगत के सभी झमेले  । सफल वही तो होय, बढ़े जो एक अकेले ।। -रमेश चौहा...

नारीत्व छूटे ना

काम नहीं है ऐसा कोई, जिसे न कर पाये नारी ।पुरषों से दो पग आगे अब, कल की ओ बेचारी । निश्चित ही यह बात गर्व की, भगनी तनया आगे ।हुई आत्मनिर्भर अब भार्या, मातु पिता सम लागे ।। नारी नर में होड़ लगे जब, नारी बाजी मारे ।अवनी से अम्बर तक अब तो, नार कहीं ना हारे ।। नारी के आपाधापी में, नारीत्व छूटे ना ।मातृत्व स्वर्ग से होत बड़ा, तथ्य कभी टूटे ना...

मैने सुन रखा है

मैने सुन रखा था आज देख भी लिया अपनी नग्न आँखों से पैसों के लिये मित्र को व्यपारी बनते हुये तोला-मासा का राई-राई हिसाब करते हुये बुरा नही लगा मुझको क्योंकि मैने सुन रखा है बुरे समय में अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं । -रमेश चौहा...

तुम बिन

तुम बिन पूरन है कहां, मेरा कोई काज ।मेरी हर मुस्कान की, तुम ही तो हो राज ।तुम ही तो हो राज, रंग रंगा जो मन में ।मुखरित कर दूँ आज, प्रेम पियूषा तन में ।अर्पण मन अरु देह, श्वास जीवन का पलछिन ।जीवन का अस्तित्व, नही है मेरा तुम बिन ...

फेरव दृष्टि इहां एक बारे

भारत भूमि धरा अति पावन आप जहां प्रकटे बहुबारे । मानव दैत्य हुये जब कर्महि छोड़हि धर्महि पाप सवारे ।। धर्म बचावन को तब आपहिं भारत भूमि लिये अवतारे । हे जग पालक धर्म धुरन्धर, फेरव दृष्टि इहां एक बारे ।। लालच लोभ भयंकर बाढ़त, भारत को हि शिकार बनावे । स्वार्थ लगे सब काम करे अब, लोग सभी घुसखोर जनावे ।। मालिक नौकर चोर लगे अब देश लुटे निज गेह...

Blog Archive

Popular Posts

Categories