‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

देश मेरा, मैं देश का

देश मेरा भक्ति मेरी, भक्ति का मैं धर्म हूँ । राष्ट्र मेरा कर्म मेरा, कर्म का मैं मर्म हूँ ।। भूमि मेरी मातु मेरी, मातु का मैं लाल हूँ । लोग मेरे देश मेरा, देश का मैं ढाल हूँ ।। है नही ये देश मुझ से, मैं यहां हूँ देश से । देह मेरी सोच मेरा,, प्राणपन है देश से ।। राष्ट्र सेवा मंत्र मेरा, मंत्र का मैं वर्ण हूँ । देश मेरा वृक्ष बरगद, वृक्ष का मैं...

मातरम् मातरम् मातरम् मातरम (माँ भारती की आरती)

//माँ भारती की आरती// (212    212    212     212) स्वर्ग से है बड़ी यह धरा मंगलम मातरम मातरम मातरम मातरम हिन्द जैसी धरा और जग में कहां विश्व कल्याण की कामना हो जहां ज्ञान की यह धरा मेटती घोर तम मातरम मातरम मातरम मातरम स्वर्ग से है बड़ी यह धरा मंगलम मातरम मातरम मातरम मातरम श्याम की बांसुरी...

देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में

( उल्लाल छंद) देश हमारा हम देश के, देश हमारा मान है । मातृभूमि ऊंचा स्वर्ग से, भारत का यश गान है ।। देश एक है सागर गगन  एक रहे हर हाल में । देश भक्ति का चंदन सजे, नित्य हमारे भाल में ।। धर्म हमारा हम धर्म के, जिस पर हमें गुमान है । धर्म-कर्म जीवन में दिखे,जो खुद प्रकाशवान है ।। फंसे रहेंगे कब तलक हम, पाखंडियों के जाल में । देश भक्ति...

जाति सत्य इस देश में

कभी जाट पटेल कभी, कभी और का दांव । करणी सेना बाद अब, देखो कोरेगांव ।। जाति मान अभिमान है, बड़ा जाति अपमान । जाति सत्य इस देश में, देखें देकर ध्यान ।। राजनीति के खेल में, चले जाति का खेल । दंगा दंगा में दिखे, जाति पंथ का मेल ।। केवल प्रेम विवाह में, अंधे होते लोग । जात पात को छोड़कर, भोग रहे हैं भोग ।।...

दासता गढ़ते नव

नव अंग्रेजी वर्ष में, युवा मस्त हैं हिंद । भारतीय परिवेश को, भूल आंग्ल के बिंद ।। भूल आंग्ल के बिंद, दासता किसको कहते । तज अपनी पहचान, दासता में ही रहते । तजे देह जब श्वास, नाम होता उसका शव । वैचारिक परतंत्र, दासता गढ़ते नव ।...

प्रेमी पागल एक सा

प्रेमी पागल एक सा, जैसे होते भक्त । होकर जगत निशक्त वह, प्रेमी पर आसक्त ।। चंदन तरु सम प्रेम है, जिसका अचल सुगंध । गरल विरह की वेदना, सुधा मिलन अनुबंध ।...

उलझ गया है न्याय

मुझ से बढ़कर तंत्र है, सोच रहा है राम । बाबर पहले या अवध, किससे मेरा नाम ।। भारत के इस तंत्र में, उलझ गया है न्याय । राम पड़ा तिरपाल पर, झेल रहा अन्याय ।। ...

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