एक चाहता दाम है, एक कमाता नाम ।
जला पेट के आग में, कविता का हर शब्द ।
रोजी रोटी के हेतु, कलम हुई नि:शब्द ।
जिसकी जैसी सोच हो, करते रहते काम ।
हार-जीत के बीच में, रहे सोच का नाम ।।
सुबह बचत यदि कर लिये, सुखद रहेगी शाम ।
खुद की खुद ही कर मदद, तभी चलेगा काम ।
मन तन से तो है बड़ा, मन को रखिये ठीक ।
छोड़ निराशा कर्म कर, यही बात है नीक
जोड़ो मन के तार को, मनोभाव रख एक ।
समता का ही भाव तो, मनोभाव में नेक ।।