‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

नारीत्व छूटे ना

काम नहीं है ऐसा कोई, जिसे न कर पाये नारी ।पुरषों से दो पग आगे अब, कल की ओ बेचारी । निश्चित ही यह बात गर्व की, भगनी तनया आगे ।हुई आत्मनिर्भर अब भार्या, मातु पिता सम लागे ।। नारी नर में होड़ लगे जब, नारी बाजी मारे ।अवनी से अम्बर तक अब तो, नार कहीं ना हारे ।। नारी के आपाधापी में, नारीत्व छूटे ना ।मातृत्व स्वर्ग से होत बड़ा, तथ्य कभी टूटे ना...

मैने सुन रखा है

मैने सुन रखा था आज देख भी लिया अपनी नग्न आँखों से पैसों के लिये मित्र को व्यपारी बनते हुये तोला-मासा का राई-राई हिसाब करते हुये बुरा नही लगा मुझको क्योंकि मैने सुन रखा है बुरे समय में अच्छे लोग भी बुरे हो जाते हैं । -रमेश चौहा...

तुम बिन

तुम बिन पूरन है कहां, मेरा कोई काज ।मेरी हर मुस्कान की, तुम ही तो हो राज ।तुम ही तो हो राज, रंग रंगा जो मन में ।मुखरित कर दूँ आज, प्रेम पियूषा तन में ।अर्पण मन अरु देह, श्वास जीवन का पलछिन ।जीवन का अस्तित्व, नही है मेरा तुम बिन ...

फेरव दृष्टि इहां एक बारे

भारत भूमि धरा अति पावन आप जहां प्रकटे बहुबारे । मानव दैत्य हुये जब कर्महि छोड़हि धर्महि पाप सवारे ।। धर्म बचावन को तब आपहिं भारत भूमि लिये अवतारे । हे जग पालक धर्म धुरन्धर, फेरव दृष्टि इहां एक बारे ।। लालच लोभ भयंकर बाढ़त, भारत को हि शिकार बनावे । स्वार्थ लगे सब काम करे अब, लोग सभी घुसखोर जनावे ।। मालिक नौकर चोर लगे अब देश लुटे निज गेह...

दिखा न पाऊॅ आज, देश को मैं अंगूठा

मैं अंगूठा छाप हूॅं, दो पैसे से काम । रोजी-रोटी चाहिये, नहीं चाहिये नाम । नहीं चाहिये नाम, देश पर जो हो भारी । जीना मुझको देश, छोड़कर हर लाचारी ।। समरथ को नहि दोष,  करे जो काम अनूठा । दिखा न पाऊॅ आज, देश को मैं अंगूठा ।। ...

निर्धन मेरे देश के, धनवानों से श्रेष्ठ

निर्धन मेरे देश के, धनवानों से श्रेष्ठ । बईमान तो है नही, जैसे दिखते जेष्ठ ।। जैसे दिखते जेष्ठ, करोड़ो चपत लगाये । मुँह में कालिख पोत, देश से चले भगाये ।। पढ़े-लिखे ही लोग, देश को क्यों हैं घेरे । अनपढ़ होकर आज, श्रेष्ठ हैं निर्धन मेरे ।। ...

करे नहीं नीलाम

विश्व एक बाजार है, क्रय करलें सामान । किन्तु आत्म सम्मान को, करें नहीं नीलाम । करें नहीं नीलाम कभी पुरखों की थाती । इनके विचार, और ज्ञान की, लेकर बाती । दीप जलाओ, लेकर अपने, आत्म बल नेक । खुद को जानों, फिर ये मानों, है विश्व एक ...

Blog Archive

Popular Posts

Categories