मानव क्यों समझे नही, मानवता का मर्म ।
मानव मानव एक है, मानवता ही धर्म।
मानवता ही धर्म, नहीं जो मन में धारे ।
मानवता के शत्रु, आज मानव को मारे ।।
क्यों पनपे आतंक, बने क्यों इंसा दानव ।
धर्म धर्म में द्वेष, रखे आखिर क्यों मानव ।।
मानव मानव एक है, मानवता ही धर्म।
मानवता ही धर्म, नहीं जो मन में धारे ।
मानवता के शत्रु, आज मानव को मारे ।।
क्यों पनपे आतंक, बने क्यों इंसा दानव ।
धर्म धर्म में द्वेष, रखे आखिर क्यों मानव ।।
-रमेश चौहान
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