जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे ।
आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।।
उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो ।
मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।।
काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो।
जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।।
जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी ।
स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।।
छद्म...
करते क्यों तकरार
तन पाने के पूर्व ही. किये प्यार हो आप ।अपने अनुरुप छांट कर. पाये हो माँ बाप ।।
फिर क्यों तुम यह मानते. पहले होवे प्यार ।शादी के पहले भला. करते क्यों तकरार ।।
लडते रहते है सभी. बंधु बहन तो लाख ।भागे ना घर छोड़ कर. देह किये ना खाख॥
सुनकर पति के बात क्यों. छोडे पति के द्वार ।ससुरे आंगन छोड़ कर. बैठी वह मझदार ।-रमेश चौहान...
अविश्वास
//चोका//
घरेलू हिंसा
नीव खोद रहा है
परिवार का
अस्तित्व खतरे में
अहम बोले
वहम पाले रखे
सहनशक्ति
खो गया कहीं पर
शिक्षा के आए
जागरूकता आए
प्यार विश्वास
सहमा डरा हुआ
कानून देख
एक पक्षीय लागे
पहचान खो
ओ पति पत्नी
एक दूजे को यहाॅं
खूब आंख दिखाये ।
-रमेश चौहा...
राम नाम है सत्य
नश्वर इस संसार में, राम नाम है सत्य ।
हर जीवन के अंत का, होत एक ही गत्य ।
होत एक ही गत्य, प्राण जब तन को छोड़े ।
आत्म मुग्ध हो आत्म, जगत से नाता तोड़े ।।
सुन लो कहे ‘रमेश‘, रामसीता भज सस्वर ।
कर लो निज पहचान, दृश्य दुनिया है नश्वर ।।
...
स्वप्न अधूरे शेष हैं
जाते जाते कह गये, सच्चे मनुज कलाम ।
स्वप्न अधूरे शेष हैं, करने को हैं काम ।।
करने को हैं काम, डगर बच्चों चुन लो ।
देश हमारा एक, बात अच्छे से गुन लो ।।
गढ़ना हो जब देश, धर्म आडे ना आते ।
रखो राष्ट्र सम्मान, दिये सिख जाते जाते ...
बने क्यों इंसा दानव
मानव क्यों समझे नही, मानवता का मर्म ।मानव मानव एक है, मानवता ही धर्म।मानवता ही धर्म, नहीं जो मन में धारे ।मानवता के शत्रु, आज मानव को मारे ।।क्यों पनपे आतंक, बने क्यों इंसा दानव ।धर्म धर्म में द्वेष, रखे आखिर क्यों मानव ।।
-रमेश चौहान...
लड़ना है मुझको
मैं
नही
चाहता
बिना लड़े
शहिद होना
युद्ध चाहता हूॅ
शत्रुओं को मारने ।।1।।
मैं
नहीं
कायर
शत्रुओं सा
बुजदिल भी
आमने-सामने
लड़ना है मुझको ।।2।।
-रमेश चौहा...
सहमे आतंक से
ये
आग
बुझाये
कौन ? कैसे ?
फैल रहा है
आतंक ! आतंक !
जेहादी जुनून से।।1।।
या
मौला
या रब
कौन करे ?
फतवा जारी
मौला बैठे मौन
सहमे आतंक से ।।2।।
...
पत्थर सा इंसान क्यों
पत्थर सा इंसान क्यों, पत्थर सा भगवान।
खूब तमाशा क्यों करे, धरती पर शेैतान ।।
धरती पर शैतान, खुदा खुद को क्यों माने ।
करते कत्लेआम, यहां पर छाती ताने ।।
रोये खूब ‘रमेश‘, देख कर ऐसा मंजर ।
पूछे एक सवाल, खुदा क्यों अब तक पत्थर ।।
...
नूतन वर्ष
नूतन वर्ष
नव उमंग भर
दीजिये हर्ष ।
देवे उत्कर्ष
सुख शांति समृद्धि
आपका स्पर्श ।
मिटे संघर्ष
कालिख अंधियारा
आतंक कर्ष ।
भारत वर्ष
विश्व सिरमौर हो
हे नव वर्ष ।
पुराने मर्ज
नष्ट होवे मूल से
हे नव वर्ष ।
भरे हों पर्श
दीन हीन सबका
हे नव वर्ष ।
-रमेश चौ...
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