चुनावी सजल
सुई रेत में गुम हो गई , सत्य चुनावी घोष में,
कौन कहां अब ढूँढे उसे, बुने हुये गुण-दोष में ।
भाग्य विधाता बनने चले, बैठ ऊँट की पीठ पर,
चना-चबेना खग-मृग हेतु, छिड़क रहें उद्घोष में ।
जाल बिछाये छलबल लिये, दाने डाले बोल के
देख प्रतिद्वंदी वह सजग, लाल दिखे है रोष में ।
बने आदमी यदि आदमी, अपने को पहचान कर
रत्न ढूँढ लेवे सिंधु से, मिथक तोड़ संतोष में ।
लोभ मोह के झाँसा फँसे, अपने को ही भूल कर
पत्थर पाकर प्रसन्न रहे, अवसर के इस कोष में ।।
-रमेश चौहान
बढ़ो तुम देखा-देखी
देखा-देखी से जगत, आगे बढ़ते लोग ।
अगल-बगल को देखकर, बढ़े जलन का रोग ।
बढ़े जलन का रोग, करे मन ऐसा करना ।
करके वैसा काम, सफलता का पथ गढ़ना ।
सुन लो कहे रमेश, छोड़ कर अपनी सेखी ।
करलो खुद कुछ काम, बढ़ो तुम देखा-देखी ।।
अगल-बगल को देखकर, बढ़े जलन का रोग ।
बढ़े जलन का रोग, करे मन ऐसा करना ।
करके वैसा काम, सफलता का पथ गढ़ना ।
सुन लो कहे रमेश, छोड़ कर अपनी सेखी ।
करलो खुद कुछ काम, बढ़ो तुम देखा-देखी ।।
सबूत चाहिये
मांगे आज सबूत, करे जो शोर चुनावी ।
सोच रहा है देश, हुआ किसका बदनामी ।।
देख नियत पर खोट, नियत अपना ना देखे ।
निश्चित ये करतूत, शत्रु ने हाथ समेखे ।
प्रमाण-पत्र देश-प्रेम का , तुझे अन्य से ना चाहिये ।
किन्तु हमें तो तुमसे सही, इसका इक सबूत चाहिये ।।
कल की बातें छोड़, आज का ही दिखलाओ ।
देख रहा जो देश, देश को ही बतलाओ ।।
कल की वह हर बात, दिखे जो तुम दिखलाये ।
सच है या झूठ, कौन हमको बतलाये ।।
पीढी ठहरे हम आज के, देख रहे हैं हम आज को ।
लोकतंत्र का सजग प्रहरी, देखे प्रतिनिधि के काज को ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
सोच रहा है देश, हुआ किसका बदनामी ।।
देख नियत पर खोट, नियत अपना ना देखे ।
निश्चित ये करतूत, शत्रु ने हाथ समेखे ।
प्रमाण-पत्र देश-प्रेम का , तुझे अन्य से ना चाहिये ।
किन्तु हमें तो तुमसे सही, इसका इक सबूत चाहिये ।।
कल की बातें छोड़, आज का ही दिखलाओ ।
देख रहा जो देश, देश को ही बतलाओ ।।
कल की वह हर बात, दिखे जो तुम दिखलाये ।
सच है या झूठ, कौन हमको बतलाये ।।
पीढी ठहरे हम आज के, देख रहे हैं हम आज को ।
लोकतंत्र का सजग प्रहरी, देखे प्रतिनिधि के काज को ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
नेता देते चोट
देश विरोधी बात पर, करे कौन है वोट ।
जिसे रिझाने देश को, नेता देते चोट ।।
नेता देते चोट, शत्रु को बाँहें डाले ।
व्यर्थ-व्यर्थ के प्रश्न, देश में खूब उझाले ।।
रोये देख "रमेश ", लोग कुछ हैं अवरोधी ।
देना उसको चोट, बचे ना देश विरोधी ।।
- रमेश चौहान
चिंतन के दोहे
मंगलमय हो दिन आपका, कृपा करे तौ ईष्ट ।
सकल मनोरथ पूर्ण हो, जो हो हृदय अभिष्ट ।।
जीवन दुश्कर मृत्यु से, फिर भी जीवन श्रेष्ठ ।
अटल मृत्यु को मान कर, जीना हमें यथेष्ठ ।।
एक ध्येय पथ एक हो, एक राष्ट्र निर्माण ।
एक धर्म अरु कर्म के, धारें तीर कमान ।।
कर्म आज का होत है, कल का तेरा भाग्य ।
निश्चित होता कर्म फल, गढ़ ले निज सौभाग्य ।।
दिवस निशा बिन होत ना, निशा दिवस का मूल ।
नित्य नियत निज कर्म कर, किये बिना कुछ भूल ।
साथ समय चलता नहीं, हमको चलना साथ ।
साथ समय के जो चले, उनके ऊँचे माथ ।।
अग्नी है ज्यों काष्ठ में, जीवन में है काल ।
ध्येय मुक्ति का पथ जगत, करना नहीं मलाल ।।
राष्ट्रधर्म ही धर्म है, मेरा अपना धर्म ।
मातृभूमि रक्षा हेतु, मरना मेरा कर्म ।।
आँख खोल कर देखिये, सपने कई हजार ।
लक्ष्य मान कर दौड़िये, करने को साकार ।
न्याय-न्याय लगता नहीं, होय न्याय में देर ।
वर्षों तक कुचले दबे, बनकर केवल ढेर ।।
शिक्षा का उद्देश्य क्या, पढ़े-लिखों की भीड़ ।
दाना मुँह न डाल सके, बुन न सके वह नीड़ ।।
नाव डूब जाता यथा, नाव चढ़े जब नीर ।
गर्व चढ़े जब देह पर, डूब जात मतिधीर ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
सकल मनोरथ पूर्ण हो, जो हो हृदय अभिष्ट ।।
जीवन दुश्कर मृत्यु से, फिर भी जीवन श्रेष्ठ ।
अटल मृत्यु को मान कर, जीना हमें यथेष्ठ ।।
एक ध्येय पथ एक हो, एक राष्ट्र निर्माण ।
एक धर्म अरु कर्म के, धारें तीर कमान ।।
कर्म आज का होत है, कल का तेरा भाग्य ।
निश्चित होता कर्म फल, गढ़ ले निज सौभाग्य ।।
दिवस निशा बिन होत ना, निशा दिवस का मूल ।
नित्य नियत निज कर्म कर, किये बिना कुछ भूल ।
साथ समय चलता नहीं, हमको चलना साथ ।
साथ समय के जो चले, उनके ऊँचे माथ ।।
अग्नी है ज्यों काष्ठ में, जीवन में है काल ।
ध्येय मुक्ति का पथ जगत, करना नहीं मलाल ।।
राष्ट्रधर्म ही धर्म है, मेरा अपना धर्म ।
मातृभूमि रक्षा हेतु, मरना मेरा कर्म ।।
आँख खोल कर देखिये, सपने कई हजार ।
लक्ष्य मान कर दौड़िये, करने को साकार ।
न्याय-न्याय लगता नहीं, होय न्याय में देर ।
वर्षों तक कुचले दबे, बनकर केवल ढेर ।।
शिक्षा का उद्देश्य क्या, पढ़े-लिखों की भीड़ ।
दाना मुँह न डाल सके, बुन न सके वह नीड़ ।।
नाव डूब जाता यथा, नाव चढ़े जब नीर ।
गर्व चढ़े जब देह पर, डूब जात मतिधीर ।।
-रमेशकुमार सिंह चौहान
चुनावी होली
चुनावी होली
(सरसी छंद)
जोगीरा सरा ररर रा
वाह खिलाड़ी वाह.
खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग ।
ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।।
जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा
जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर ।
सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।।
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार ।
अंधभक्त का ताना देते, उनके अजब विचार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
बरसाती मेढक दिखते जैसे, दिखती है वह नार ।
आज चुनावी गोता खाने, चले गंग मजधार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मंदिर मस्जिद माथा टेके, दिखे छद्म निरपेक्ष।
दादा को बिसरे बैठे, नाना के सापेक्ष ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
दूध पड़े जो मक्खी जैसे, फेक रखे खुद बाप ।
साथ बुआ के निकल पड़े हैं, करने सत्ता जाप ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
इक में माँ इक में मौसी, दिखती ममता प्यार ।
कोई कुत्ता यहाँ न भौके, कहती वह ललकार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मफलर वाले बाबा अब तो, दिखा रहे हैं प्यार ।
जिससे लड़ कर सत्ता पाये, अब उस पर बेजार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
पाक राग में राग मिलाये, खड़ा किये जो प्रश्न ।
एक खाट पर मिलकर बैठे, मना रहे हैं जश्न ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
नाम चायवाला था जिनका, है अब चौकीदार ।
उनके सर निज धनुष चढ़ाये, उस पर करने वार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
-रमेशकुमार सिंह चौहान
(सरसी छंद)
जोगीरा सरा ररर रा
वाह खिलाड़ी वाह.
खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग ।
ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।।
जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा
जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर ।
सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।।
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार ।
अंधभक्त का ताना देते, उनके अजब विचार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
बरसाती मेढक दिखते जैसे, दिखती है वह नार ।
आज चुनावी गोता खाने, चले गंग मजधार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मंदिर मस्जिद माथा टेके, दिखे छद्म निरपेक्ष।
दादा को बिसरे बैठे, नाना के सापेक्ष ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
दूध पड़े जो मक्खी जैसे, फेक रखे खुद बाप ।
साथ बुआ के निकल पड़े हैं, करने सत्ता जाप ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
इक में माँ इक में मौसी, दिखती ममता प्यार ।
कोई कुत्ता यहाँ न भौके, कहती वह ललकार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
मफलर वाले बाबा अब तो, दिखा रहे हैं प्यार ।
जिससे लड़ कर सत्ता पाये, अब उस पर बेजार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
पाक राग में राग मिलाये, खड़ा किये जो प्रश्न ।
एक खाट पर मिलकर बैठे, मना रहे हैं जश्न ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
नाम चायवाला था जिनका, है अब चौकीदार ।
उनके सर निज धनुष चढ़ाये, उस पर करने वार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा
-रमेशकुमार सिंह चौहान
अपनों को ही ललकारो
जो पाले अलगाववाद को, उसको हमने ही पाला ।
झांके ना घर के भेदी को, जपे दूसरों की माला ।।
झांके ना घर के भेदी को, जपे दूसरों की माला ।।
पाल हुर्रियत मुसटंडों को, क्यों अश्रु बहाते हो ।
दोष दूसरों को दे देकर, हमकों ही बहकाते हो ।।
दोष दूसरों को दे देकर, हमकों ही बहकाते हो ।।
राजनीति के ढाल ओढ़ कर, बुद्धिमान कहलाते हो।
इक थैली के चट्टे-बट्टे, जो सरकार बनाते हो ।।
इक थैली के चट्टे-बट्टे, जो सरकार बनाते हो ।।
आतंकी के जो सर्जक पालक, उनको ही पहले मारो ।
निश्चित ही आतंक खत्म हो, अपनों को ही ललकारो ।।
निश्चित ही आतंक खत्म हो, अपनों को ही ललकारो ।।
घास डालना बंद करो अब, जयचंदों को पहचानों ।
नहीं पाक में दम है इतना, बैरी इसको ही जानों ।।
नहीं पाक में दम है इतना, बैरी इसको ही जानों ।।
-रमेश चौहान
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