‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

चिंतन के दोहे

मंगलमय हो दिन आपका, कृपा करे तौ ईष्ट ।
सकल मनोरथ पूर्ण हो, जो हो हृदय अभिष्ट ।।

जीवन दुश्कर मृत्यु से, फिर भी जीवन श्रेष्ठ ।
अटल मृत्यु को मान कर, जीना हमें यथेष्ठ ।।

एक ध्येय पथ एक हो, एक राष्ट्र निर्माण ।
एक धर्म अरु कर्म के, धारें तीर कमान ।।

कर्म आज का होत है, कल का तेरा भाग्य ।
निश्चित होता कर्म फल, गढ़ ले निज सौभाग्य ।।

दिवस निशा बिन होत ना, निशा दिवस का मूल ।
नित्य नियत निज कर्म कर, किये बिना कुछ भूल ।

साथ समय चलता नहीं, हमको चलना साथ ।
साथ समय के जो चले, उनके ऊँचे माथ ।।

अग्नी है ज्यों काष्ठ में, जीवन में है काल ।
ध्येय मुक्ति का पथ जगत, करना नहीं मलाल ।।

राष्ट्रधर्म ही धर्म है, मेरा अपना धर्म ।
मातृभूमि रक्षा हेतु, मरना मेरा कर्म ।।

आँख खोल कर देखिये, सपने कई हजार ।
लक्ष्य मान कर दौड़िये, करने को साकार ।

न्याय-न्याय लगता नहीं, होय न्याय में देर ।
वर्षों तक कुचले दबे, बनकर केवल ढेर ।।

शिक्षा का उद्देश्य क्या, पढ़े-लिखों की भीड़ ।
दाना मुँह न डाल सके, बुन न सके वह नीड़ ।।

नाव डूब जाता यथा, नाव चढ़े जब नीर ।
गर्व चढ़े जब देह पर, डूब जात मतिधीर ।।


-रमेशकुमार सिंह चौहान

चुनावी होली

चुनावी होली
(सरसी छंद)

जोगीरा सरा ररर रा
वाह खिलाड़ी वाह.

खेल वोट का अजब निराला, दिखाये कई रंग ।
ताली दे-दे जनता हँसती, खेल देख बेढंग ।।
जोगी रा सरा ररर रा, ओजोगी रा सरा ररर रा

जिनके माथे हैं घोटाले, कहते रहते चोर ।
सत्ता हाथ से जाती जब-जब, पीड़ा दे घनघोर ।।
जोगी रा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

अंधभक्त जो युगों-युगों से, जाने इक परिवार ।
अंधभक्त का ताना देते, उनके अजब विचार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

बरसाती मेढक दिखते जैसे, दिखती है वह नार ।
आज चुनावी गोता खाने, चले गंग मजधार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

मंदिर मस्जिद माथा टेके, दिखे छद्म निरपेक्ष।
दादा को बिसरे बैठे,  नाना के सापेक्ष ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

दूध पड़े जो मक्खी जैसे, फेक रखे खुद बाप ।
साथ बुआ के निकल पड़े हैं, करने सत्ता जाप ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा


इक में माँ इक में मौसी, दिखती ममता प्यार ।
कोई कुत्ता यहाँ न भौके, कहती वह ललकार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

मफलर वाले बाबा अब तो, दिखा रहे हैं प्यार ।
जिससे लड़ कर सत्ता पाये, अब उस पर बेजार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

पाक राग में राग मिलाये, खड़ा किये जो प्रश्न ।
एक खाट पर मिलकर बैठे, मना रहे हैं जश्न ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा


नाम चायवाला था जिनका, है अब चौकीदार ।
उनके सर निज धनुष चढ़ाये, उस पर करने वार ।।
जोगीरा सरा ररर रा ओ जोगी रा सरा ररर रा

-रमेशकुमार सिंह चौहान

अपनों को ही ललकारो

जो पाले अलगाववाद को, उसको हमने ही पाला ।
झांके ना घर के भेदी को, जपे दूसरों की माला ।।
पाल हुर्रियत मुसटंडों को, क्यों अश्रु बहाते हो ।
दोष दूसरों को दे देकर, हमकों ही बहकाते हो ।।
राजनीति के ढाल ओढ़ कर, बुद्धिमान कहलाते हो।
इक थैली के चट्टे-बट्टे, जो सरकार बनाते हो ।।
आतंकी के जो सर्जक पालक, उनको ही पहले मारो ।
निश्चित ही आतंक खत्म हो, अपनों को ही ललकारो ।।
घास डालना बंद करो अब, जयचंदों को पहचानों ।
नहीं पाक में दम है इतना, बैरी इसको ही जानों ।।
-रमेश चौहान

है मेरी भी कामना

//दोहा गीत//

है मेरी भी कामना, करूँ हाथ दो चार ।
उर पर चढ़ कर शत्रु के, करूँ वार पर वार ।।
लड़े बिना मरना नहीं, फँसकर उनके जाल ।
छद्म रूप में शत्रु बन, चाहे आवे काल ।।
लिखूँ काल के भाल पर, मुझे देश से प्यार ।
है मेरी भी कामना ..........

बुजदिल कायर शत्रु हैं, रचते जो षडयंत्र ।
लिये नहीं हथियार पर, गढ़ते रहते तंत्र ।।
बैरी के उस बाप का, सुनना अब चित्कार ।
है मेरी भी कामना.......

मातृभूमि का मान ही, मेरा निज पहचान ।
मातृभूमि के श्री चरण, करना अर्पण प्राण ।।
बाल न बाका होय कछु, ऐसा करूँ विचार ।
है मेरी भी कामना.....

-रमेशकुमार सिंह चौहान

सबसे गंदा खेल है, राजनीति का खेल

ऐसा कैसे हो रहा, जो मन रहे उदास ।
धर्म सनातन सत्य है, नहीं अंधविश्वास ।।
नहीं अंधविश्वास, राम का जग में होना ।
मुगल आंग्ल का खेल, किये जो जादू-टोना ।।
खड़ा किये जो प्रश्न, धर्म आस्था है कैसा ।
ज्यों काया में प्राण, धर्म आस्था है ऐसा ।।

सबसे गंदा खेल है, राजनीति का खेल ।
करने देते हैं नहीं, इक-दूजे को मेल ।।
इक-दूजे को मेल, नहीं क्यों करने देते ।
करों बांट कर राज, यही शिक्षा जो लेते ।।
विश्व एक परिवार, जिसे लगता है फंदा ।
राजनीति का खेल, खेल है सबसे गंदा ।।

-रमेशकुमार सिंह चौहान

प्रियतम प्रीत तुम्हारी

उपासना है आराधना भी, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।
सुमन  सुगंधी सम अनुबंधित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।
ध्रुव तारा सम अटल गगन पर, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।
प्राण देह में ज्यों पल्लवित, प्रियतम प्रीत तुम्हारी ।।

सोच रहा हूँ क्या लिखूँ

सोच रहा हूँ क्या लिखूँ, लिये कलम मैं हाथ ।
कथ्य कथानक शिल्प अरू, नहीं विषय का साथ ।।
नहीं विषय का साथ, भावहिन मुझको लगते ।
उमड़-घुमड़ कर भाव, मेघ जलहिन सा ठगते ।।
दशा देश का देख, कलम को नोच रहा हूँ ।
कहाँ मढ़ू मैं दोष, कलम ले सोच रहा हूँ ।।

आगे  पढ़े....

Blog Archive

Popular Posts

Categories