देश भारत देश जैसा, दूसरा ना ठौर ।।
मानते तो है जहाँ पर, राम है अवधेश ।
किन्तु खुलकर बोलते ना, वाह रे ये देश ।।
Ramesh Kumar Chauhan
विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।
Manwata kaha hai ?
AAPNI AAKHO SE DEKHO
MAI DESH KA ..
जय-जय जय गणपति, जय-जय जगपति, प्रथम पूज्य भगवंता ।
हे विद्यादाता, भाग्य विधाता, रिद्धि-सिद्धि सुखकंता।।
जय-जय गणनायक, जय वरदायक, चरण गहे सुर संता ।
भक्तन हितकारी, दण्डकधारी, , हे मद-मत्सर हंता ।।
है गज मुख पावन, शोक नशावन, दिव्य रूप इकदंता ।
है मूषक वाहन, परम सुहावन, सकल सृष्टि उपगंता ।।
हे गौरी नंदन, तुझको वंदन, टेर सुनो अब मोरी ।
जाऊँ बलिहारी, हे उपकारी, है अवलंबन तोरी ।।
-रमेश चौहान
टाॅपर बच्चे स्कूल के, नौकर हैं अधिकांश ।
पहले पुस्तक दास थे, अब मालिक के दास।।
अब मालिक के दास, शान शौकत दिखलाता ।
खुद का क्या पहचान, रौब अपना बतलाता ।।
मालिक बना रमेश, लिये शिक्षा जो सच्चे ।
सफल दिखे अधिकांश, नहीं है टाॅपर बच्चे ।।
-रमेश चौहान
आजादी रण शेष अभी है, देखो नयन उघारे ।
वैचारिक परतंत्र अभी हैं, इस पर कौन विचारे ।।
अंग्रेजी का हंटर अब तक, बारबार फुँफकारे ।
अपनी भाषा दबी हुई है, इसको कौन उबारे ।।
काँट-छाँट कर इस धरती को, दिये हमें आजादी ।
छद्म धर्मनिरपेक्ष हाथ रख, किये मात्र बर्बादी ।।
एक देश में एक रहें हम, एक धर्म अरु भाषा ।
राष्ट्रवाद का धर्म गढ़े अब, राष्ट्रवाद की भाषा ।।
धर्म व्यक्ति का अपना होवे, जात-पात भी अपना ।
देश मात्र का एक धर्म हो, ऐसा हो अब सपना ।।
-रमेश चौहान
अटल अटल है आपका, ध्रुव तरा सा नाम । बोल रहा हर गांव में, पहुंच सड़क का काम ।। जोड़ दिए हर गांव को, मुख्य सड़क के साथ। गांव शहर से जब जुड़ा...