‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

मरे तीन तलाक से

मरे तीन तलाक से कोई, कोई तलाक पाने ।
कोई रखते पत्नी ज्यादा, कोई एक न जाने ।।

कुचली जाती पत्नी कोई, इस तलाक के दम पर ।
गोद पड़े बच्चे बेचारे, जीवित मरते गम पर ।।

कोई पत्नी बैठी मयके, खर्चे पति से लेती ।
पति ले जाने तैयार खड़ा, पर वह भाव न देती ।।

पति से पीड़ित पत्नी कोई, कोई पत्नी पीड़ित ।
सही नही है नियम एक भी, दोनों है सम्पीड़ित ।।

समरसता का नैतिक शिक्षा, मन में भरना होगा ।
मिटे मूल से यह बीमारी, इलाज करना होगा ।।


कूड़े करकट सम मैं पड़ा


मैं बिकने को तत्पर खड़ा । केवल प्रेम मोल पर अड़ा
ऐसे क्रेता कोई नही । जिनके बाहर अंदर सही

कोई तो मीठे बोल से । कोई अपने चषचोल से
अपने वश कर ले जो मुझे । एक न ऐसे साथी सुझे

एक मुखौटा मुख पर ढके । मुझे शिकारी जैसे तके
मेरे बढ़ते हर पाद को । सह न सके कुछ आस्वाद को

कैसे झूलूँ उनके बाँह में । कैसे दौडूँ उनके राह में
मोल रहित हो मैं तो खड़ा । कूड़े करकट सम मैं पड़ा

बैरी बाहर है नहीं

बैरी बाहर है नहीं, घर अंदर है चोर ।
मानवता के नाम पर, राष्ट्र द्रोह ना थोर ।।
राष्ट्र द्रोह ना थोर, शत्रु को पनाह देना ।
गढ़कर पत्थरबाज, साथ उनके हो लेना ।।
राजनीति का स्वार्थ, कहां है अब अनगैरी ।
सैनिक का अपमान, मौन हो देखे बैरी ।।

मूल्य समय का होता जग में

शादी करने आयु न्यूनतम, निश्चित है इस देश ।
नहीं अधिकतम निर्धारित है, यह भी चिंता क्लेष ।।

अल्प आयु में मिलन देह का, या विवाह संबंध ।
चिंता दोनो ही उपजाते, हो इन पर प्रतिबंध ।।

चढ़े प्रीत का ज्वर है सबको, जब यौवन तन आय ।
सपने में सपने का मिलना, नाजुक मन को भाय ।।

कच्चे मटके कच्चे होते, जाते हैं ये टूट ।
पकने से पहले प्रयोग का, नहीं किसी को छूट ।।

मूल्य समय का होता जग में, माने यह व्यवहार ।
रखे-रखे पके हुये फल भी, हो जाते बेकार ।।

दिखे राष्ट्र उद्योग

राष्ट्र धर्म जब एक तो, बटे हुये क्यो लोग ।।
निश्चित करें प्रतीक कुछ, दिखे राष्ट्र उद्योग।।

अच्छा को अच्छा कहें, लेकर उसका नाम ।
बुरा बुराई भी कहें, लख कर उसका काम ।।

कट्टरता के नाम पर, धर्म हुआ बदनाम ।
राष्ट्र धर्म भी धर्म है, कहते रहिमा राम ।।

भगवा की धरती हरी, भगवा हीना रंग ।
जो समझे सब एक हैं, बाकी करते तंग ।।

उनको कोटि प्रणाम,

आजादी पर हैं किये, जो जीवन बलिदान ।
मातृभूमि के श्री चरण, भेट किये निज प्राण ।।
भेट किये निज प्राण, राष्ट्र सुत आगमजानी ।
राजगुरू सुखदेव, भगत जैसे बलिदानी ।
जिसके कारण देश, लगे हमको अहलादी ।
उनको कोटि प्रणाम, हमें दी जो आजादी ।।

राष्ट्र से जोड़े नाता

चलो चले उस राह, चले थे जिस पर बाबा ।
पूजें अपना देश, यही है काशी काबा ।
ओठों पर जय हिन्द, दिलों पर भारत माता ।
राष्ट्रधर्म ही एक, राष्ट्र से जोड़े नाता ।।

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