‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

कोरोना महामारी पर दोहे

देख महामारी कहर, सारी दुनिया दंग । कहना सबका एक है, रहना घर में बंद । समय परिस्थिति देख कर, करता है जो काम । अजर अमर इतिहास में, अंकित करता नाम । आंधी अंधा होत है, कर सके न पहचान । कौन दीन अरु है धनी, कौन निरिह बलवान ।। -रमेश चौह...

सभ्यसमाज

सभ्यसमाज एक कुशल माली बेटी की पौध रोपते जतन से पल्लवित होकर नन्ही सी पौध अटखेलियां करे गुनगुनाती हुई पुष्पित होती महके चारो ओर करे जतन तोड़े ना कोई चोर जग बगिया बेटी जिसकी शोभा गढ़े गौरव गाथा ...

ममता का आंचल

तारें आकश दीनकर प्रकाश धरती रज समुद्र जल निधि ईश्वर दया माप सका है कौन जगत मौन ममता का आंचल गोद में शिशु रक्त दान करती वात्सल्य स्नेह ...

नेताओं के चम्मच

.कौन करे है ? देश में भ्रष्टाचार, हमारे नेता, नेताओं के चम्मच आम जनता शासक अधिकारी सभी कहते हाय तौबा धिक्कार थूक रहे हैं एक दूसरे पर ये जानते ना कोई नही नही रे मानते नही कोई तुम ही तो हो मै भी उनके साथ बेकार की है बात ।...

प्राण सम सजनी

.चारू चरण चारण बनकर श्रृंगार रस छेड़ती पद चाप नुुपूर बोल वह लाजवंती है संदेश देती पैर की लाली पथ चिन्ह गढ़ती उन्मुक्त ध्वनि कमरबंध बोले लचके होले होले सुघ्घड़ चाल रति लजावे चुड़ी कंगन हाथ, हथेली लाली मेहंदी मुखरित स्वर्ण माणिक ग्रीवा करे चुम्बन धड़की छाती झुमती बाला कान उभरी लट मांगमोती ललाट भौहे मध्य टिकली झपकती पलके नथुली नाक हंसी उभरे गाल ओष्ठ...

जीवन समर्पण

रोपा है पौध रक्त सिंचित कर निर्लिप्त भाव जीवन की उर्वरा अर्पण कर लाल ओ मेरे लाल जीवन पथ सुघ्घड़ संवारते चुनते कांटे हाथ आ गई झुर्री लाठी बन तू हाथ कांप रहा है अंतःकरण, प्रस्पंदित आकांक्षा, अमूर्त पड़ा मूर्त करना अब, सारे सपने, अनगढ़े लालसा प्रतिबम्ब है तू तन मन मेरा जीवन समर्पण ...

कौन श्रेष्ठ है ?

.कौन है सुखी ? इस जगत बीच कौन श्रेष्ठ है ? करे विचार किसे पल्वित करे सापेक्षवाद परिणाम साधक वह सुखी हैं संतोष के सापेक्ष वह दुखी है आकांक्षा के सापेक्ष अभाव पर उसका महत्व है भूखा इंसान भोजन ढूंढता है पेट भरा है वह स्वाद ढूंढता कैद में पक्षी मन से उड़ता है कैसा आश्चर्य ऐसे है मानव भी स्वतंत्र तन मन परतंत्र है कहते सभी बंधनों से स्वतंत्र हम आजाद है...

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