‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

जीवन समर्पण

रोपा है पौध रक्त सिंचित कर निर्लिप्त भाव जीवन की उर्वरा अर्पण कर लाल ओ मेरे लाल जीवन पथ सुघ्घड़ संवारते चुनते कांटे हाथ आ गई झुर्री लाठी बन तू हाथ कांप रहा है अंतःकरण, प्रस्पंदित आकांक्षा, अमूर्त पड़ा मूर्त करना अब, सारे सपने, अनगढ़े लालसा प्रतिबम्ब है तू तन मन मेरा जीवन समर्पण ...

कौन श्रेष्ठ है ?

.कौन है सुखी ? इस जगत बीच कौन श्रेष्ठ है ? करे विचार किसे पल्वित करे सापेक्षवाद परिणाम साधक वह सुखी हैं संतोष के सापेक्ष वह दुखी है आकांक्षा के सापेक्ष अभाव पर उसका महत्व है भूखा इंसान भोजन ढूंढता है पेट भरा है वह स्वाद ढूंढता कैद में पक्षी मन से उड़ता है कैसा आश्चर्य ऐसे है मानव भी स्वतंत्र तन मन परतंत्र है कहते सभी बंधनों से स्वतंत्र हम आजाद है...

मानवता कहां है ?

2.घने जंगल वह भटक गया साथी न कोई आगे बढ़ता रहा ढ़ूंढ़ते पथ छटपटाता रहा सूझा न राह वह लगाया टेर देव हे देव सहाय करो मेरी दिव्य प्रकाष प्रकाशित जंगल प्रकटा देव किया वह वंदन मानव है तू ? देव करे सवाल उत्तर तो दो मानवता कहां है ? महानतम मैने बनाया तुझे सृष्टि रक्षक मत बन भक्षक प्राणी जगत सभी रचना मेरी सिरमौर तू मुखिया मुख जैसा पोशण कर सदा ...

कविताई

कवि के संग कवित्व है ? और कविता संग कविताई ? ? कवि सम्मेलन के बाद पूछ रहा एक वृद्ध की तरुणाई ...

कुण्डलियाँ यूँ बोलती है

-कुण्डलियाँ यूँ बोलती है- 1. बेटा-बेटी एक सम, सौ प्रतिशत है सत्य ।बेटा अब कमतर लगे, यह भी है कटु तथ्य ।।यह भी है कटु तथ्य, उच्च शिक्षा वह छोड़े ।अपने आप हताश, नशा से नाता जोड़े ।सुन लो कहे ‘रमेश’, हुआ वह अब सप्रेटा ।बेटी के समकक्ष, लगे कमतर अब बेटा ।।(सप्रेटा-मक्खन रहित दूध) 2. दादा-दादी माँ-पिता, भैया-भाभी संग ।चाचा-चाची और हैं, ज्यों फूलों...

बच्चे समझ न पाय, दर्द जो मन हैं मेरे

मेरे घर संस्कार का,  टूट रहा दीवार ।छद्म सोच के अस्त्र से, करे बच्चे प्रतिकार ।।करे बच्चे प्रतिकार, कुपथ का बन सहचारी  ।मौज मस्ती के नाम, बने ना कुछ व्यवहारी।।हृदय रक्त रंजीत, कुसंस्कारों के घेरे ।बच्चे समझ न पाय, दर्द जो मन हैं  मेरे ।।-रमेश चौ...

राम राज में

एक घाट एक बाट, सिंह-भेड़  साथ-साथ,रहते  थे जैसे पूर्व, रामजी के राज में  ।शोक-रोग राग-द्वेश, खोज-खोज फिरते थे,मिले ठौर बिन्दु सम,  अवध समाज में  ।।दिन फिर फिर जावे,जन-जन साथ आवेजाति-धर्म भेद टूटे, राम नाम  साज में ।राम भक्त जान सके, और पहचान सके, राम राम कहलाते, अपने ही काज में  ।।-रमेश चौहान&nb...

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