तेरे नैनों का निमंत्रण पाकर
मेरी धड़कन तुम्हारी हुई ।
मेरे नैना तुम्हारी अंखियों से,
पूछा जब एक सवाल
तुम में ये मेरा बिम्ब कैसा ?
पलकों के ओट पर छुपकर
वह बोल उठी- "मैं तुम्हारी दुलारी हुई ।"
नैनों की भाषा जुबा क्या समझे
कहता है ना तुझसे मेरा वास्ता
यह तकरार नहीं तो क्या था ?
नयनों ने फिर नैनों से पूछा
वो प्यार नहीं तो क्या था ??
-रमेश चौह...
आरक्षण सौ प्रतिशत करें
छोड़ बहत्तर सौ करें, आरक्षण है नेक ।
संविधान में है नहीं, मानव-मानव एक ।।
मानव-मानव एक, कभी होने मत देना ।
बना रहे कुछ भेद, स्वर्ण से बदला लेना ।।
घुट-घुट मरे "रमेश", होय तब हाल बदत्तर ।
मात्र स्वर्ण को छोड़, करें सौ छोड़ बहत्तर ...
वेद
श्रीमुख से है जो निसृत, कहलाता श्रुति वेद ।
मानव-तन में भेद क्या, नहीं जीव में भेद ।।
नहीं जीव में भेद, सभी उसके उपजाये ।
भिन्न-भिन्न रहवास, भिन्न भोजन सिरजाये ।।
सबका तारणहार, मुक्त करते हर दुख से ।
उसकी कृति है वेद, निसृत उनके श्रीमुख से ।।
-रमेश चौह...
मैं देश का (गंगोदक सवैया)
शान में मान में गान में प्राण में, जान लो मान लो मात्र मैं देश का ।
ध्यान से ज्ञान से योग से भोग से, मूल्य मेरा बने वो सभी देश का ।
प्यार से बांट के प्यार को प्यार दे, बांध मैं लिया डोर से देश को ।
जाति ना धर्म ना पंथ भी मैं नहीं, दे चुका हूँ इसे दान में देश को ।
-रमेश चौह...
हे सावन सुखधाम
सावन! तन से श्याम थे,
अब मन से क्यों श्याम
धरती शस्या तुम से होती,
नदियां गहरी-गहरी
चिड़िया चीं-चीं कलरव करती,
कुआँ-बावली अहरी ।
(अहरी=प्याऊ)
तुम तो जीवन बिम्ब हो,
तजते क्यों निज काम
धरती तुमसे जननी धन्या,
नीर सुधा जब लाये
भृकुटि चढ़ाये जब-जब तुम तो,
बंध्या यह कहलाये
हम धरती के जीवचर,
करते तुम्हें प्रणाम
तुम से जीवन नैय्या चलती,
तुम बिन खाये हिचकोले
नीर...
हिन्दी श्लोक
आठ वर्ण जहां आवे, अनुष्टुपहि छंद है ।
पंचम लघु राखो जी, चारो चरण बंद में ।।
छठवाँ गुरु आवे है, चारों चरण बंद में ।
निश्चित लघु ही आवे, सम चरण सातवाँ ।।
अनुष्टुप इसे जानों, इसका नाम श्लोक भी ।
शास्त्रीय छंद ये होते, वेद पुराण ग्रंथ में ।।
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राष्ट्रधर्म कहावे क्या, पहले आप जानिये ।
मेरा देश धरा मेरी, मन से आप मानिये...
भूमि अतिक्रमण का मार
नदियों पर ही बस गये, कुछ स्वार्थी इंसान ।
नदियां बस्ती में बही, रखने निज सम्मान ।।
जल संकट के मूल में, केवल हैं इंसान ।
जल के सारे स्रोत को, निगल रहे नादान ।।
कहीं बाढ़ सूखा कहीं, कारण केवल एक ।
अतिक्रमण तो भूमि पर, लगते हमको नेक ।।
गोचर गलियां गुम हुई, चोरी भय जल स्रोत ।
चोर पुलिस जब एक हो, कौन लगावे रोक ।।
जंगल नदियों से हम सभी, छिन रहे पहचान को...
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