धरती सूूूूरज चांंद सितारे, अरु जीवोंं का देेेेह ।
देेेख रहा हूँ जब सेे जीवन, एक रूप अरु नेेेह ।।
माँ की ममता प्यार बाप का, समरस मैंने पाया ।
मुझ पर उनकी चिंता समरस, जब से मुझको जाया ।।
मेरे जीवन में सुख-दुख क्रम, दिवस-निशा क्रम के जैसे ।
कल भी सुख-दुख था जीवन में, अब भी वैसे के वैसे ।।
भूख-प्यास शाश्वत काया का, मैंने जीवन में पाया ।
मेरे तन के चंचल मन को, राग-द्वेष ने भरमाया ।।
तन कद-काठी बदल गया पर, बदली न हाथ की रेखा ।
अंतस की सारी चीजों को, मैंने ज्यों का त्यों देखा ।।
-रमेश चौहान