मैं अंगूठा छाप हूॅं, दो पैसे से काम ।
रोजी-रोटी चाहिये, नहीं चाहिये नाम ।
नहीं चाहिये नाम, देश पर जो हो भारी ।
जीना मुझको देश, छोड़कर हर लाचारी ।।
समरथ को नहि दोष, करे जो काम अनूठा ।
दिखा न पाऊॅ आज, देश को मैं अंगूठा ।।
रोजी-रोटी चाहिये, नहीं चाहिये नाम ।
नहीं चाहिये नाम, देश पर जो हो भारी ।
जीना मुझको देश, छोड़कर हर लाचारी ।।
समरथ को नहि दोष, करे जो काम अनूठा ।
दिखा न पाऊॅ आज, देश को मैं अंगूठा ।।