‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

ईश प्रार्थना

ईश्वर से कुछ मांगना, प्रश्न बनाता एक । जग व्यापक सर्वज्ञ है ? या हम किये कुटेक ?? (कुटेक=अनुचित मांग) क्या मांगू प्रभु आप से, जब रहते हो साथ । चिंता मैं क्यों कर करूं, जो पकड़े हो हाथ ।। मेरे अनभल बात को चित्त धरें ना नाथ । मेरा मन तो स्वार्थ में, करे बात अकराथ ।। सुख में विस्मृत कर गया, दुख में रहा न आस । कसे कसौटी आप जब, भूल गया यह दास ।। श्रद्धा...

सुबह-सुबह का सैर

सुबह-सुबह का सैर तो, औषध हैअनमोल । रक्तचाप अरु शर्करा, नियत रखें बेमोल ।। नियत रखें बेमोल, देह के भारीपन को । काया दिखे सुडौल, रिझाये जो निज जन को । प्रतिदिन उठो "रमेश", नींद  तज सुबह-सुबह का । औषध है अनमोल,  सैर तो सुबह-सुबह का ।। -रमेश चौह...

शुभकामना

नित्य निरन्तर ध्येय पथ, पाद त्राण हो आपका । काव्य फलक के सूर्य सम, सम्य मान हो आपका ।। बुद्धि प्रखर अरु स्वस्थ हो, राष्ट्र प्रेम पीयूष से । काया कल्पित स्वस्थ हो, मनोभाव सह तूष से ।। (तूष-संतोष) प्रेम जगत का प्राप्य हो, प्रेम सुवासित बाँट कर । शान्ति नित्य शाश्वत रहे, तन-मन पीड़ा छाँट कर ।। सुयश अमर हो आपका, चेतन होवे लेखनी । वर्ण शब्द अरु भाव...

दोहे-कानून और आदमी

कानून और आदमी, खेल रहे हैं खेल । कभी आदमी शीर्ष है, कभी शीर्ष है जेल ।। कानून न्याय से बड़ा, दोनों में मतभेद । न्याय देखता रह गया, उन  पर उभरे छेद ।। न्याय काल के गाल में, चढ़ा हुआ है भेट । आखेटक कानून है, दुर्बल जन आखेट ।। केवल झूठे वाद में, फँसे पड़े कुछ लोग । कुछ अपराधी घूमकर, फाँके छप्पन भोग ।। कानून और न्याय द्वै, नपे एक ही तौल । मोटी-मोटी...

रखते क्यों नाखून (कुण्डलियां)

मानव होकर लोग क्यों, रखते  हैं नाखून । पशुता का परिचय जिसे, कहता है मजमून ।। कहता है मजमून, बुद्धि जीवी है मानव । होते विचार शून्य, जानवर या फिर दानव ।।बनते भेड़ "रमेश", आज फैशन में खोकर । रखते हैं नाखून, लोग क्यों मानव होकर ।।...

पहनावा (कुण्डलियां)

पहनावा ही बोलता, लोगों का व्यक्तित्व । वस्त्रों के हर तंतु में, है वैचारिक स्वरितत्व ।। है वैचारिक स्वरितत्व, भेद मन का जो खोले । नग्न रहे जब सोच, देह का लज्जा बोले । फैशन का यह फेर, नग्नता का है लावा । आजादी के नाम, युवा पहने पहनावा ।...

शिक्षा तंत्र पर दोहे

शिक्षाविद अरु सरकार से, चाही एक जवाब । गढ़े निठ्ठले लोग क्यो, शिक्षा तंत्र जनाब ।। रोजगार गारंटी देते, श्रमिकों को सरकार । काम देश में मांग रहे अब, पढ़े लिखे बेगार । बेगारी की बात पर, विचार करे समाज । पढ़े लिखे ही लोग क्यों, बेबस लगते आज ।। अक्षर पर निर्भर नहीं, जग का कोई ज्ञान । अक्षर साधन मात्र है, लक्ष्य ज्ञान को जान ।। विद्या शिक्षा...

Blog Archive

Popular Posts

Categories