कानून और आदमी, खेल रहे हैं खेल ।
कभी आदमी शीर्ष है, कभी शीर्ष है जेल ।।
कानून न्याय से बड़ा, दोनों में मतभेद ।
न्याय देखता रह गया, उन पर उभरे छेद ।।
न्याय काल के गाल में, चढ़ा हुआ है भेट ।
आखेटक कानून है, दुर्बल जन आखेट ।।
केवल झूठे वाद में, फँसे पड़े कुछ लोग ।
कभी आदमी शीर्ष है, कभी शीर्ष है जेल ।।
कानून न्याय से बड़ा, दोनों में मतभेद ।
न्याय देखता रह गया, उन पर उभरे छेद ।।
न्याय काल के गाल में, चढ़ा हुआ है भेट ।
आखेटक कानून है, दुर्बल जन आखेट ।।
केवल झूठे वाद में, फँसे पड़े कुछ लोग ।
कुछ अपराधी घूमकर, फाँके छप्पन भोग ।।
कानून और न्याय द्वै, नपे एक ही तौल ।
मोटी-मोटी पुस्तकें, उड़ा रही माखौल ।।
कानून और न्याय द्वै, नपे एक ही तौल ।
मोटी-मोटी पुस्तकें, उड़ा रही माखौल ।।
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