‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

हिन्दी दिवस

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे । जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।। कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने । क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ...

गांव बने तब एक निराला

http://www.openbooksonline.com/xn/detail/5170231:BlogPost:799762 सौंधी सौंधी मिट्टी महकेचीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके । बाँह भरे हैं जब धरा गगनबरगद पीपल जब हुये मगनगांव बने तब एक निरालादेख जिसे ईश्वर भी बहके । ऊँची कोठी एक न दिखतेपगडंडी पर कोल न लिखतेहै अमराई ताल तलैया,गोता खातीं जिसमें अहके । शोर शराबा जहां नही हैबतरावनि ही एक सही हैचाचा-चाची...

खाक करे है देह को

खाक करे है देह को, मन का एक तनाव । हँसना केवल औषधी, पार करे जो नाव ।। फूहड़ता के हास्य से, मन में होते रोग । करें हास परिहास जब, ध्यान रखें सब लोग ।। बातचीत सबसे करे, बनकर बरगद छाँव। कोयल वाणी बोलिये, तजें कर्ककश काँव ।। धान्य बड़ा संतोष का, जलन बड़ा है रोग । परहित सा सेवा नही, नहीं स्वार्थ सा भोग ।। डोर प्रेम विश्वास का, सबल सदा तो होय । टूटे से...

कार्बन क्रोड़ प्रतिरोध निर्धारण हेतु दोहे

//विज्ञान के विद्यार्थीयों के लिये// कार्बन क्रोड़ प्रतिरोध निर्धारण हेतु दोहे- (B.B. ROY of Great Bharat has Very Good Wife) काला भूरा लाल है, वा नारंगी पीत । हरित नील अरू बैगनी, स्लेटी सादा शीत ।। दिखे रंग जब सुनहरा, पांच होय है ढंग । चांदी के दस होय है, बीस होय बिन...

हे गौरी नंदन

त्रिभंगी छंद हे गौरी नंदन, प्रभु सुख कंदन, हे विघ्न हरण, भगवंता । गजबदन विनायक, शुभ मति दायक, हे प्रथम पूज्य, इक दंता ।। हे आदि अनंता, प्रिय भगवंता, रिद्धी सिद्धी , प्रिय कंता । हे देव गणेषा, मेटो क्लेषा, शोक विनाषक, दुख हंता ।। हे भाग्य विधाता, मंगल दाता, हे प्रभु भक्तन, हितकारी । तेरे चरण पड़े, सब भक्त खड़े, करते तेरो, बलिहारी ।। हे बुद्धि प्रदाता,...

मेरी बाहो में आओ

नीले नभ से उदित हुई तुम, नूतन किरणों सी छाई।ओठो पर मुस्कान समेटे,सुधा कलश तुम छलकाई ।। निर्मल निश्चल निर्विकार तुम, परम शांति को बगराओ ।बाहों में तुम खुशियां भरकर, मेरी बाहो में आओ।। -रमेश चौहान...

मेरी बाहो में आओ

नीले नभ से उदित हुई तुम,  नूतन किरणों सी छाई। ओठो पर मुस्कान समेटे, सुधा कलश तुम छलकाई ।। निर्मल निश्चल निर्विकार तुम,  परम शांति को बगराओ । बाहों में तुम खुशियां भरकर,  मेरी बाहो में आओ।। -रमेश चौहान...

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