‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

कार्बन क्रोड़ प्रतिरोध निर्धारण हेतु दोहे

//विज्ञान के विद्यार्थीयों के लिये// कार्बन क्रोड़ प्रतिरोध निर्धारण हेतु दोहे- (B.B. ROY of Great Bharat has Very Good Wife) काला भूरा लाल है, वा नारंगी पीत । हरित नील अरू बैगनी, स्लेटी सादा शीत ।। दिखे रंग जब सुनहरा, पांच होय है ढंग । चांदी के दस होय है, बीस होय बिन...

हे गौरी नंदन

त्रिभंगी छंद हे गौरी नंदन, प्रभु सुख कंदन, हे विघ्न हरण, भगवंता । गजबदन विनायक, शुभ मति दायक, हे प्रथम पूज्य, इक दंता ।। हे आदि अनंता, प्रिय भगवंता, रिद्धी सिद्धी , प्रिय कंता । हे देव गणेषा, मेटो क्लेषा, शोक विनाषक, दुख हंता ।। हे भाग्य विधाता, मंगल दाता, हे प्रभु भक्तन, हितकारी । तेरे चरण पड़े, सब भक्त खड़े, करते तेरो, बलिहारी ।। हे बुद्धि प्रदाता,...

मेरी बाहो में आओ

नीले नभ से उदित हुई तुम, नूतन किरणों सी छाई।ओठो पर मुस्कान समेटे,सुधा कलश तुम छलकाई ।। निर्मल निश्चल निर्विकार तुम, परम शांति को बगराओ ।बाहों में तुम खुशियां भरकर, मेरी बाहो में आओ।। -रमेश चौहान...

मेरी बाहो में आओ

नीले नभ से उदित हुई तुम,  नूतन किरणों सी छाई। ओठो पर मुस्कान समेटे, सुधा कलश तुम छलकाई ।। निर्मल निश्चल निर्विकार तुम,  परम शांति को बगराओ । बाहों में तुम खुशियां भरकर,  मेरी बाहो में आओ।। -रमेश चौहान...

कुलषित संस्कृति हावी तुम पर

कुलषित संस्कृति हावी तुम पर, बांह पकड़ नाच नचाये । लोक-लाज शरम-हया तुमसे, बरबस ही नयन चुराये ।। किये पराये अपनो को तुम, गैरों से हाथ मिलाये । भौतिकता के फेर फसे तुम, अपने घर आग लगाये ।। मैकाले के जाल फसे हो, समझ नही तुझको आयेे । अपनी संस्कृति अपनी माटी, तुझे फुटी आँख न भाये ।। दुग्ध पान को श्रेष्ठ जान कर, मदिरा को क्यो अपनाये । पियुष बूॅद गहे नही...

पीपल औघड़ देव सम

पीपल औघड़ देव सम, मिल जाते हर ठौर पर । प्राण वायु को बांटते, हर प्राणी पर गौर कर ।। आंगन छत दीवार पर, नन्हा पीपल झांकता । धरे जहां वह भीम रूप, अम्बर को ही मापता । कांव कांव कौआ करे, नीड़ बुने उस डाल पर । स्नेह पूर्ण छाया मिले, पीपल के जिस छाल पर ।। छाया पीपल पेड़ का, ज्ञान शांति दे आत्म का । बोधि दिये सिद्धार्थ को, संज्ञा बौद्ध परमात्म...

यही देश अभिमान है

आजादी का पर्व यह, सब पर्वो से है बड़ा । बलिदान के नींव पर, देश हमारा है खड़ा ।। अंग्रेजो से जो लड़े, बांध शीष पर वह कफन । किये मजबूर छोड़ने, सह कर उनके हर दमन ।। रहे लक्ष्य अंग्रेज तब, निकालना था देश से । अभी लक्ष्य अंग्रेजियत, निकालना दिल वेश से। आजादी तो आपसे, सद्चरित्र है चाहता । छोड़ो भ्रष्टाचार को, विकास पथ यह काटता ।। काम नही सरकार का, गढ़ना चरित्र...

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