‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

गूॅंज रहे हैं व्योम

हर शिव हर शिव शिव शिव हर हर, शंभु सदाशिव ओम । हर हर महादेव शिव शंकर, गूॅंज रहे हैं व्योम ।। परम सुहावन सावन आये, भक्त करे जयकार । साजे काॅवर कांधे पर ले, भक्त चले शिव द्वार ।। दुग्ध शर्करा गंगा जल से, भक्त करे परिषेक । बेल पत्र अरू कनक पुष्प से, करे भक्त अभिषेक । आदिदेव को भक्त मनावे, करते आयुष्होम । हर हर महादेव... अंग भभूती चंदन मल कर, करते...

गौ माता

गाय को न जीव मात्र, मानिये महानुभाव हमने सदैव इसे, माॅं समान माना है । धरती की कामधेनु, धरती का कल्पवृक्ष भव तरण तारणी, गौ माॅं को ही जाना है । गौ माता के रोम-रोम, कोटि कोटि है देवता ब्रम्हा बिष्णु शिव सभी, गौ पर विराजते। धर्म सनातन कहे, गौ गंगा अरू गीता को जो करे मन अर्पण, मुक्ति पथ साजते ।। विज्ञान की कसौटी से, परख कर जाना है गौ मूत्र अरू गोबर...

अस्पताल में

गुंज रहीं हैं सिसकियां रूदन, क्रन्दन, आहें मरीजो के रोगो से जुझते हुये अस्पताल में । अट्हास कर रहा है, मौत अपने बाहों में भरने बेताब हर किसी को, हर पल अस्पताल में । किसी कोने पर दुबकी बैठी है जिंदगी एक टिमटिमाते लौ की तरह अस्पताल में । द्वंद चल रहा है जीवन और मौत में आशा और निराशा में घने अंधेरे को चिर सकता है धैर्य का मंद दीपक अस्पताल में । धैर्य...

//चित्र से काव्य तक//

बंदर दल वन छोड़ कर, घूम रहे हर गांव । छप्पर छप्पर कूद कर, तोड़ रहे हर ठांव । तोड़ रहे हर ठांव, परेशानी में मानव । रामा दल के मित्र, हमें लगते क्यों दानव ।। अर्जी दिया ‘रमेंश‘, समेटे पीर समंदर । पढ़े वानरी पत्र, साथ में नन्हा बंदर ।। पढ़ कर चिठ्ठी वानरी,, मन ही मन मुस्काय । अनाचार...

काया कैसे देश की, माने अपनी खैर

जाति जाति के अंग से, एक कहाये देह । काम करे सब साथ में, देह जगाये नेह । हाथ पैर का शत्रु हो, पीठ पेट में बैर । काया कैसे देश की, माने अपनी खैर ।। पंड़ित वह काश्मीर का, पूछ रहा है प्रश्न । टूटे मेरे घोसले, उनके घर क्यों जश्न ।। हिन्दू हिन्दी देश में, लगते हैं असहाय । दूर देश की धूल को, जब जन माथ लगाय ।। ‘कैराना‘ इस देश का, बता रहा पहचान...

जागो हिन्दू अब तो जागो

कौन सुने हिन्दू की बातें, गैर हुये कुछ अपने । कुछ गहरी निद्रा में सोये, देख रहें हैं सपने ।। गढ़ सेक्यूलर की दीवारे, अपने हुये पराये । हिन्दूओं की बातें छोड़ो, हिन्दू जिसे न भाये ।। धर्म निरपेक्ष का चोला धर, बनते उदारवादी । राजनीति में माहिर वो तो, केवल अवसरवादी ।। उनको माने सोने चांदी, हमको सिक्के खोटे । उनके जुकाम भारी लगते, घाव हमारे...

मैंने गढ़ा है (चोका)

मैं प्रकृति हूॅं, अपने अनुकूल,मैंने गढ़ा है,एक वातावरणएक सिद्धांतसाहचर्य नियम शाश्वत सत्यजल,थल, आकाशसहयोगी हैंएक एक घटकएक दूजे केसहज अनुकूल ।मैंने गढ़ा हैजग का सृष्टि चक्रजीव निर्जिवमृत्यु, जीवन चक्रधरा निरालीजीवन अनुकूलघने जंगलऊंचे ऊंचे पर्वतगहरी खाईअथाह रत्नगर्भामहासागरअविरल नदियांन जाने क्या क्यासभी घटकपरस्पर पूरक ।मैंने गढ़ा हैभांति भांति...

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