‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

मां आदि भवानी है

हाइकू एक पत्थर भगवान हो गया आस्था से रंगे । आशा विश्वास श्रद्धा जगाये रखे मिट्टी मूरत । मैं भक्त हूं मां आदि भवानी है सृष्टि रचक । मातु बिराजे श्रद्धा के नवरात कण-कण में । धर्म धारक अधर्म विदारक मातु भवानी । शक्ति दीजिये जग में मानवता अक्षुण रहे । -रमेश चौह...

जग जननी मां आइये ..

जग जननी मां आइये, मेरी कुटिया आज । मुझ निर्धन की टेर सुन, रखिये मेरी लाज ।। निर्धन से तो है भला, कचरा तिनका घास । दीनता के अभिशाप से, दुखी आपका दास ।। मानव सा माने नहीं, जग का सभ्य समाज ।। जग जननी मां आइये ... बेटी बहना है दुखी, देख जगत व्यभिचार । लोक लाज अब मिट रहे, नवाचार की मार ।। लोग यहां घर छोड़ के, दिखला रहे मिजाज । जग जननी मां आइये.... घर-घर...

अफसाना ये प्यार का

अफसाना ये प्यार का, जाने ना बेदर्द । हम हॅस हॅस सहते रहे, बांट रही वह दर्द।। लम्हा लम्हा इष्क में, बहाते रहे अश्क । आशकीय है बेखुदी, इसमें कैसा रश्क ।। वो तो खंजर घोपने, मौका लेती खोज । उनकी लंबी आयु की, करूं दुवा मैं रोज ।। पत्थर पर भी फूल जो, चढ़ते हो हररोज । पत्थर भी भगवान तो, हो जाते इकरोज ।। ...

अति पावन मंतव्य

जन्म लिये इस देश में, मरना भी इस देश । रक्षा करने देश का, काम करें लवलेश ।। केवल मरना मारना, राष्ट्र धर्म ना होय । राष्ट्र धर्म गंभीर है, समझे जी हर कोय ।। सभी नागरिक जो करें, निज मौलिक कर्तव्य । राष्ट्र भक्त सच्चे वही, अति पावन मंतव्य ।। खास आम हर कोय तो, जतलाते अधिकार । होते क्या कर्तव्य हैं, समझे ना संसार ।। ...

जय जय जय गणराज प्रभु....

जय जय जय गणराज प्रभु, जय गजबदन गणेश । विघ्न-हरण मंगल करण, हरें हमारे क्लेश।। गिरिजा नंदन प्रिय परम, महादेव के लाल । सोहे गजमुख आपके, तिलक किये हैं भाल ।। तीन भुवन अरू लोक के, एक आप अखिलेश । जय जय जय गणराज प्रभु.... मातु-पिता के आपने, परिक्रमा कर तीन । दिखा दियेे सब देेव को, कितने आप प्र्रवीन । मातुु धरा अरू नभ पिता, सबको दे संदेश  ।। जय जय...

कवि बन रहे हजार

वाह वाह के फेर में, कवि बन रहे हजार । ऐसे कविवर पाय के, कविता है बीमार ।। केवल तुकबंदी दिखे, दिखे ना काव्य तत्व । नही शिल्प व विधान है, ना ही इनके सत्व ।। आत्म मुग्ध तो है सभी, पाकर झूठे मान । भले बुरे इस काव्य की, कौन करे पहचान ।। पाठक स्रोता तो सभी, करते केवल वाह । अभ्यासी जन को यहां, कौन बतावें राह ।। बतलाना चाहे अगर, कोई कभी कभार । बुरा...

कट्टरता

रे इंसा कट्टर बनकर क्यों लगाते हो घोसलों में आग जहां तेरा घरौंदा।। ...

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