‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

बनें हर कोई दर्पण

दर्पण सुनता देखता, जग का केवल सत्य । आँख-कान से वह रहित, परखे है अमरत्व ।। परखे है अमरत्व, सत्य को जो है माने । सत्य रूप भगवान, सत्य को ही जो जाने ।। सुनलो कहे ‘रमेश‘, करें सच को सच अर्पण । आँख-कान मन खोल, बनें हर कोई दर्पण ।। ...

नामी कामी संत

गुंडा को भाई कहे, पाखण्ड़ी को संत । करे पंथ के नाम पर, मानवता का अंत ।। मानवता का अंत, करे होकर उन्मादी । नामी कामी संत, हुये भाई सा बादी ।। अंधभक्त जब साथ, रहे होकर के मुंडा । पाखण्ड़ी वह संत, बने ना कैसे गुंडा ।। ...

राजनीति का खेल

बात-बात में जो करे, संविधान की बात । संविधान के मान को, देते क्यों हैं मात ।। संविधान की सभा में, जिसने किया स्वीकार । राष्ट्रगीत का आज फिर, करते क्यों प्रतिकार ।। हिन्द पाक दो खण्ड़ में, बांट चुके हैं देश । मुद्दा जीवित फिर वही, बचा रखे क्यो शेष ।। छद्म धर्म निरपेक्ष है, राष्ट्रवाद भी छद्म । छद्म छद्म के द्वन्द से, उपजे पीड़ा पद्म ।। हिन्दू मुस्लिम...

देश धर्म

धारण करने योग्य जो, कहलाता है धर्म । सबसे पहले देश है, समझें इसका मर्म ।। जिसको अपने देश पर, होता ना अभिमान । कैसे उसको हम कहें, एक सजग इंसान ।। हांड मांस के देह को, केवल मिट्टी जान । जन्म भूमि के धूल को, जीवन अपना मान ।। ...

देश है सबसे पहले

पहले मेरा धर्म है, पाछे मेरा देश । कहते ऐसे लोग जो, रोप रहे विद्वेश । रोप रहे विद्वेश, देश को करने खण्डित । राजनीति के नाम, किये अपने को मण्डित ।। सुनलो कहे ‘रमेश‘, चलो तुम अहले गहले । राजनीति को छोड़, देश है सबसे पहले ।। ...

भौतिक युग

भौतिक युग विस्तार में, नातों का दुश्काल । माँ सुत के पथ जोहती, हुई आज कंकाल ।। हुई आज कंकाल, हमारी संस्कृति प्यारी । अर्थ तंत्र का अर्थ, हुये जब सब पर भारी ।। सुन लो कहे ‘रमेश‘, सोच यह केवल पौतिक । तोड़ रहे परिवार,  फाँस बनकर युग भौतिक ।। (पौतिक-सड़ांध युक्त घाव) ...

बैद्यनाथ की कावरिया यात्रा

बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल । पाँव-पाँव चलता चल भक्ता, बन जायेगा तेरा कल ।। चल चल बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल । कावर साजो अथवा पिठ्ठुल, साजो पहले निज मन । बोल बम्म के नारोंं से, ऊर्जा भरलो अपने तन । बैद्यनाथ कामना लिंग है, देंगे तुझको वांक्षित बल । चल चल बाबा की नगरी चल चल रे, बाबा के द्वारे चल-चल । उत्तर वाहिनी गंज...

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