‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

छत्तीसगढ़िया व्‍यंजन: बोरे-बासी

बासी में है गुण बहुत, मान रहा है शोध ।
खाता था छत्तीसगढ़, था पहले से  बोध ।
था पहले से  बोध, सुबह प्रतिदिन थे खाते ।
खाकर बासी प्याज, काम पर थे सब जाते ।।
चटनी संग "रमेेश",  खाइये छोड़ उदासी ।
भात भिगाकर रात, बनाई जाती बासी ।

भात भिगाकर राखिए, छोड़ दीजिये रात ।
भिगा भात वह रात का, बासी है कहलात ।।
बासी है कहलात, विटामिन जिसमें होता ।
है पौष्टिक आहार, क्षीणता जिससे खोता ।।
सुन लो कहे 'रमेश', राखिये रीत निभाकर।
कई-कई हैं लाभ, खाइये भात भिगाकर ।।

व्यंजन छत्तीसगढ़िया, बोरे बासी खास ।
सुबह-सुबह तो खाइये, जगावे न यह प्यास ।।
जगावे न यह प्यास, पसइया यदि तुम पीते ।
हड्डी बने कठोर, आयु लंबी तुम जीते ।
सुन लो कहे "रमेश", नहीं यह अभिरंजन ।
बोरे बासी खास, एक है पौष्टिक व्यंजन ।।

बोरे बासी में भेद है, यद्यपि रीत समान ।
एक रात का होत है, एक दिवस का जान ।।
एक दिवस का जान, नाम जिसका है बोरे ।
दिवस भिगाकर भात, खाइये छोरी-छोरे ।।
बासी बनते रात, खाइये बारहमासी ।
बचे भात उपयोग, करे है बोरे बासी ।।

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है,

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है,
पैरों का छिलना बाकी है

जीवन एक दुश्कर पगडंडी
सम्हल-सम्हल कर चलने पर भी
जहां खरोच आना बाकी है

चिकनी सड़क पर हमराही बहुत है
कटिले पथ पर पथ ही साथी
जहां खुद का आना बाकी है

चाहे हँस कर चलें हम
चाहे रो कर चलें हम
चलते-चलते गिरना
गिर-गिर कर सम्हलना
यही जीवन का झांकी

समरसता यदि चाहिये

समरसता यदि चाहिये, करना होगा काम ।
हर सरकारी काम में, पूछे न जाति नाम ।।
पूछे न जाति नाम, राजनैतिक दल धारक।
नेता अरू सरकार, जाति के निश्चित कारक ।।
बोले केवल हिन्द, हिन्द यदि दिल में बसता ।
दिवस नही फिर दूर, यहां हो जब समरसता ।।

एक अकेले


एक अकेले जूझिये, चाहे जो कुछ होय ।
समय बुरा जब होत है, बुरा लगे हर कोय ।
बुरा लगे हर कोय, साथ ना कोई देते ।
तब ईश्वर भी स्वयं, परीक्षा दुश्कर लेते ।।
छोड़ें देना दोष,  जगत के सभी झमेले  ।
सफल वही तो होय, बढ़े जो एक अकेले ।।
-रमेश चौहान

नारीत्व छूटे ना

काम नहीं है ऐसा कोई, जिसे न कर पाये नारी ।
पुरषों से दो पग आगे अब, कल की ओ बेचारी ।

निश्चित ही यह बात गर्व की, भगनी तनया आगे ।
हुई आत्मनिर्भर अब भार्या, मातु पिता सम लागे ।

नारी नर में होड़ लगे जब, नारी बाजी मारे ।
अवनी से अम्बर तक अब तो, नार कहीं ना हारे ।

नारी के आपाधापी में, नारीत्व छूटे ना ।
मातृत्व स्वर्ग से होत बड़ा, तथ्य कभी टूटे ना ।।

मैने सुन रखा है

मैने सुन रखा था
आज देख भी लिया
अपनी नग्न आँखों से
पैसों के लिये
मित्र को
व्यपारी बनते हुये
तोला-मासा का
राई-राई
हिसाब करते हुये
बुरा नही लगा
मुझको
क्योंकि मैने
सुन रखा है
बुरे समय में
अच्छे लोग भी
बुरे हो जाते हैं ।
-रमेश चौहान

तुम बिन

तुम बिन पूरन है कहां, मेरा कोई काज ।
मेरी हर मुस्कान की, तुम ही तो हो राज ।
तुम ही तो हो राज, रंग रंगा जो मन में ।
मुखरित कर दूँ आज, प्रेम पियूषा तन में ।
अर्पण मन अरु देह, श्वास जीवन का पलछिन ।
जीवन का अस्तित्व, नही है मेरा तुम बिन ।।

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