‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

शिक्षा: एक अच्छा नौकर है, मालिक नहीं

 हमने विज्ञान का निबंधरटा था,विज्ञान एक अच्छा नौकर है,मालिक नहींआज एक समाचार पढ़ाएक मेजर के तीन लड़के थेखूब-पढ़ाया लिखायाऐशों आराम दौलत थमायासमय चक्र चलता गया,मेजर की पत्नी चल बसीबेटे पत्नियों से युक्तमेजर बूढ़ा हो चलाहाथ-पैर असक्‍तजुबान बंदवह बिस्तर का कैदी रह गया धन का कमी था नहींबेटे बाप को नौकर भरोसे छोड़विदेश चले गएमेजर के...

मुखौटा

उनके चेहरे परमहीन मुख श्रृंगारक लेप सा,भावों और विचारों काहै अदृश्‍य मुखौटामानवतावादी और सेक्‍युलरकहलाने वाले चेहरों कोमैं जब गौर से देखा,उनके चेहरे परपानी उलेड़ा तो मैंने पायान मानवतावादी मानवतावादी हैन ही सेक्‍युलर, सेक्‍युलरअपने विचारों केस्वजाति बंधुओं को हीवे समझते हैं मानवसेक्‍युलर भी विचार और आस्था से भिन्‍नप्राणियों को मानवकहां समझते...

चिंता या चिंतन

अनसुनी बातें सुनता रहा मैं अनकही बातें कहता रहा मैं अनदेखी दृश्य को देखकर ।विचारों की तंतुमन विबर की लार्वा सेतनता जा रहा थाउलझता-सुलझता हुआमन को हृदय की गहराई में देखकर ।।चिंता और चिंतन गाहे-बगाहे साथ हो चलेनैतिकता का दर्पण मेंअंकित छवि को देखकर...

आ लौट चलें

 आ लौट चलें,चकाचौंध से, दृश्य प्रकाश परशोर-गुल से, श्रव्य ध्वनि परसपनों की निद्रा से, भोर उजास परआखिर शाखाओं का अस्तित्व मूल से तो ही है ।आ लौट चलेंगगन की ऊँचाई से, धरा धरातल पर सागर की गहराई से, अवलंब भू तट परशून्य तम अंधियारे से, टिमटिमाते लौ के हद परआखिर मन के पर को भी थाह चाहिए यथार्थ का ।।आ लौट चलेंदूसरों के कंधों से, अपने पैरों पररील लाइफ...

ओम

भोले बाबा शंभु हर,  हर-हर शंकर ओम ।बोल बम्ब की नाद से, गूंज रहा है व्योम ।।गूंज रहा है व्योम, बम्ब भोले का नारा ।बोल बम्ब जयकार, लगे भक्तों को प्यारा ।।कांवर लेकर कांध,  राह पर भगतन बोले ।करें कामना पूर्ण, शंभु शिव बाबा भोले...

आग लगी पेट्रोल पर (दोहागीत)

आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।राज्य, केन्द्र सरकार को, तनिक नहीं है क्लेश ।।मँहगाई छूये गगन, जमीदोज है आय ।जनता अपनी पीर को, कैसे किसे बताय ।।राज व्यपारी का दिखे, नेता भी अलकेश ।आग लगी पेट्रोल पर, धधक रहा है देश ।(अलकेश-कुबेर)राज्य कहे है केन्द से, और केन्द्र तो राज्य ।कंदुक के इस खेल का, केवल दिखे सम्राज्य ।।इसका करें निदान अब, तज नाहक उपदेश...

अँकुश व्‍यपारी पर नहीं

 जनता मेरे देश का, दिखे विवश लाचार ।अँकुश व्‍यपारी पर नहीं, सौ का लिए हजार ।।सौ का लिए हजार, सभी लघु दीर्घ व्‍यपारी ।लाभ नीति हो एक, देश में अब सरकारी ।।कितना लागत मूल्‍य,  बिक्री का कितना तेरे ।ध्‍यान रखें सरकार,  विवश हैं जनता मेरे ।।&nb...

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