‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

एक तरही गजल-देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ

देखा जब से उसे मै दीवाना हुआ उसको पाना जीवन का निशाना हुआ । जब से गैरों के घर आना जाना हुआ तब से गैरो से भी तो यराना हुआ । मुखड़े पर उनकी है चांद की रोशनी नूर से उनके रोशन यह जमाना हुआ । कस्तूरी खुशबू रग रग समाया हुआ गुलबदन देख गुलशन सुहाना हुआ । सादगी की मूरत रूप की देवी वो तो कोकीला कंठ उनका तराना हुआ । प्यार करते नही प्यार हो जाता है प्यार...

हम आजाद है रे (चोका)

कौन है सुखी ? इस जगत बीच कौन श्रेष्‍ठ है ? करे विचार किसे पल्वित करे सापेक्षवाद परिणाम साधक वह सुखी हैं संतोष के सापेक्ष वह दुखी है आकांक्षा के सापेक्ष अभाव पर उसका महत्व है भूखा इंसान भोजन ढूंढता है पेट भरा है वह स्वाद ढूंढता कैद में पक्षी मन से उड़ता है कैसा आश्‍चर्य ऐसे है मानव भी स्वतंत्र तन मन परतंत्र है कहते सभी बंधनों से स्वतंत्र हम आजाद है...

तरही गजल

खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से, फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से । इक आदमियत खफा हो चला जमाने से, इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से । नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी, फुवाद टूट गया उसको अजमाने से । जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से । असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने ...

दीपावली की शुभकामना (गीतिका छंद)

दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे । पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।। वक्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े । लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े । कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो  । अश्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो । सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना । मन पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फ्रेकना ।। शुभ  विचारी...

लोकतंत्र करे अपील (छंदमाला)

दोहाबड़े जोर से बज रहे, सुनो चुनावी ढोल ।साम दाम सब भेद से, झुपा रहे निज पोल ।। सोरठालोकतंत्र पर्व एक, सभी मनाओं पर्व यह ।बने देश अब नेक,, करो जतन मिलकर सभी ।। ललितगंभीर होत चोट वोट का, अपनी शक्ति दिखाओं ।जो करता हो काज देश हित, उनको तुम जीताओं ।।लोभ स्वार्थ को तज कर मतदाता, अपना देश बनाओ।हर हाथों में काम दिलावे, नेता ऐसा अजमाओ ।। गीतिका देश के...

गजल-मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले

मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का, बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर, घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में पिता सा जो चले हर काम के अंजाम...

दोहावली

दोहे ठहर न मन इस ठांव में, जाना दूसरे ठांव । ठाठ-बाट मिटते जहाँ, मिलते शीतल छांव ।। तुम होगे हंसा गगन, काया होगी ठाट । मनुवा तुम तो हो पथिक , जीवन तेरा बाट । कर्मो की मुद्रा यहां, पाप पुण्य का  हाट ।।  ले जायेगा साथ क्या, झोली भर ले छाट ।। ले जाते उपहार हैं, कुछ ना कुछ उस धाम । कर्मों की ही पोटली, आते केवल काम ।। दुख रजनी में है छुपा,...

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