‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

प्रेम और संबंध में पहले आया कौन

/तुकबंदी/ प्रेम और संबंध में पहले आया कौन । जिसने भी सुना यह प्रश्न साध रखा मौन ।। कहने लगे मुर्गी पहले आया कि अंडा । कुछ इसी प्रकार का है यह तुम्हारा फंडा ।। नहीं नहीं आसान है । कहां तुम्हारा ध्यान है ।। अच्छा चलो एक दूसरा प्रश्न पूछते हैं । आओ मिलकर इसी पर  जुझते हैं ।। तुम्हारी मां ने तुझे बेटा मानकर पहले प्यार किया । या...

राधिका छंद-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ"

-राधिका छंद- परिभाषा- तेरह पीछे नौ भार, राधिका आवे । चरण अंत दो गुरू भार, राधिका भावे ।। तेरह मात्रा का अंत, त्रिकल ही राखें । छंद राधिका का नियम, छंदविद भाखे ।। उदाहरण-"जल स्रोत बचाओ, पानी बचाओ" पानी जीवन आधार, जिंदगी पानी । पानी से सारी सृष्टि, सृष्टि का प्राणी ।। पानी बिन जग बेकार, जीव ना बाचे । सब कोई ही जानते, बात है साचे ।। शोर मचाते हर कोय,...

मनहरण घनाक्षरी किसे कहते हैं जानिए मनहरण घनाक्षरी में

वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमननियम-धियम आप, धैर्य धर  जानिए ।।आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रखचार बार यति कर,  चार पद तानिए ।।गति यति लय भर, चरणांत गुरु धरसाधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम, चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए...

घनाक्षरी की परिभाषा घनाक्षरी में (प्रकार सहित)

रखिये चरण चार, चार बार यति धर तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ । आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।। आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’, अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ । गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।। आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण । सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर आठ-आठ...

प्रभाती दोहे

चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग । शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।। पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार । उदयाचल में रवि उदित, करता प्राण संचार ।। जाग उठे हैं नींद से, सकल सृष्टि संसार । जागो जागो हे मनुज, बनों नहीं लाचार ।। बाल समय यह दिवस...

मेरा जीवन

मेरा जीवन एक धरोहर । कभी सुर्ख तो कभी मनोहर मेरा जीवन है बच्चों का । स्वप्न स्नेहिल प्रिय सच्चों कागढ़ना है मुझको जीवन पथ । दौड़ सके जिसमें उनका रथदिन का सूरज दीप निशा का । प्रहरी बनाना सभी दिशा का संस्कारों की ज्योति जलानी । बचा सके जो मेरा पानी देश बड़ा है पहले जाने । बड़ा स्वर्ग से इसको मानेजिस धरती पर देह धरा है । वही धरा तो स्वर्ण...

कोरोना महामारी पर दोहे

देख महामारी कहर, सारी दुनिया दंग । कहना सबका एक है, रहना घर में बंद । समय परिस्थिति देख कर, करता है जो काम । अजर अमर इतिहास में, अंकित करता नाम । आंधी अंधा होत है, कर सके न पहचान । कौन दीन अरु है धनी, कौन निरिह बलवान ।। -रमेश चौह...

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