‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

हर संकटों से जुझने का संकल्प दें ।

हे विधाता नही बदनला मुझे तेरा विधान, हर दुःख- सुख में मेरा कर दे कल्याण । चाहे जितना कष्ट मेरे भाग्य में भर दे, पर हर संकटों से जुझने का संकल्प दें । जो संकट आये जीवन में उनसे मैं दो दो हाथ करू, संकट हो चाहे जितना विकट उनसे मै कभी न डरू । चाहे मेरे हर पथ पर कंटक बिखेर दें, पर उन कंटकों में चलने का साहस भर दें । कष्टो से विचलित हो अपनी मानवता...

सच्चे झूठे कौन

कल का कौरव  आज तो, पाण्ड़व नाम धराय । कल का पाण्ड़व आज क्यों, खुद को ही बिसराय ।। खुद को ही बिसराय, दुष्ट कलयुग में आकर । स्वर्ण मुकुट रख शीश, राज सिंहासन पाकर । ज्ञाता केवल कृष्ण, ज्ञान जिसको हर पल का । सच्चे झूठे कौन, याद किसको है कल का ।। ...

नूतन संवत्सर उदित

नूतन संवत्सर उदित,  उदित हुआ नव वर्ष  । कण-कण रज-रज में भरे,  नूतन-नूतन हर्ष ।। नूतन नूतन हर्ष, शांति अरु समता लावे । विश्व बंधुत्व भाव, जगत भर में फैलावे ।। नष्ट करें उन्माद, आज मिश्रित जो चिंतन । जागृत हो संकल्प, गढ़े जो भारत नूतन ।। -रमेश चौह...

हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो

हे देश के राजनेताओं, थोड़ा तो शरम करो । मुझको भारत माता कहते, मुझपर तो रहम करो ।। लड़ो परस्पर जी भरकर तुम, पर लोकतंत्र के हद में । उड़ो गगन पर उडान ऊँची, पर धरती की जद में ।। होते मतभेद विचारों में, इंसानों को क्यों मारें । इंसा इंसा के साथ रहे,, शैतानों को क्यों तारें ।। सत्ता का तो विरोध करना, लोकतंत्र का हक है । मातृभूमि को गाली देना, कुछ ना तो...

शिक्षित

शिक्षित होकर देश में, लायेंगे बदलाव । जाति धर्म को तोड़ कर, समरसता फैलाव ।। समरसता फैलाव, लोग देखे थे सपने । ऊँच-नीच को छोड़, लोग होंगे सब अपने ।। खेद खेद अरू खेद, हुआ ना कुछ आपेक्षित । कट्टरता का खेल, खेलते दिखते शिक्षित ।। ...

छत्तीसगढ़िया व्‍यंजन: बोरे-बासी

बासी में है गुण बहुत, मान रहा है शोध ।खाता था छत्तीसगढ़, था पहले से  बोध ।था पहले से  बोध, सुबह प्रतिदिन थे खाते । खाकर बासी प्याज, काम पर थे सब जाते ।।चटनी संग "रमेेश",  खाइये छोड़ उदासी ।भात भिगाकर रात, बनाई जाती बासी ।। भात भिगाकर राखिए, छोड़ दीजिये रात ।भिगा भात वह रात का, बासी है कहलात ।।बासी है कहलात, विटामिन जिसमें होता ।है पौष्टिक...

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है,

अभी तो पैरों पर कांटे चुभे है, पैरों का छिलना बाकी है जीवन एक दुश्कर पगडंडी सम्हल-सम्हल कर चलने पर भी जहां खरोच आना बाकी है चिकनी सड़क पर हमराही बहुत है कटिले पथ पर पथ ही साथी जहां खुद का आना बाकी है चाहे हँस कर चलें हम चाहे रो कर चलें हम चलते-चलते गिरना गिर-गिर कर सम्हलना यही जीवन का झांकी...

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