‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

लफंगे

काया कपड़े विहीन नंगे होते हैं । झगड़ा कारण रहीत दंगे होते हैं।। जिनके हो सोच विचार ओछे दैत्यों सा ऐसे इंसा ही तो लफंगे होते हैं ।। ...

पौन हो तुम

कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम , सता कर  सता कर  मुझे मौन हो तुम । कभी भी कहीं का किसी का न छोड़े, करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।। (पौन-प्राण ) ...

साये नजर आते नहीं

क्रोध में जो कापता, कोई उसे भाते नही । हो नदी ऊफान पर, कोई निकट जाते नही । कौन अच्छा औ बुरा को जांच पाये होश खो हो घनेरी रात तो साये नजर आते नहीं। ...

एक नूतन सबेरा आयेगा

अंधियारा को चीर, एक नूतन सबेरा आयेगा । राह बुनता चल तो सही तू, तेरा बसेरा आयेगा ।। हौसला के ले पर, उडान जो तू भरेगा नीले नभ । देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा । ...

हाथ में रंग आयेगा

पीसो जो मेंहदी तो, हाथ में रंग आयेगा । बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा । है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।। ...

घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा विष गंध (नवगीत,)

घुला हुआ है वायु में, मीठा-सा  विष गंध जहां रात-दिन धू-धू जलते, राजनीति के चूल्हे बाराती को ढूंढ रहे  हैं, घूम-घूम कर दूल्हे बाँह पसारे स्वार्थ के करने को अनुबंध भेड़-बकरे करते जिनके, माथ झुका कर पहुँनाई बोटी -  बोटी करने वह तो सुना रहा शहनाई मिथ्या- मिथ्या प्रेम से बांध रखे इक बंध हिम सम उनके सारे वादे हाथ रखे सब पानी चेरी,  चेरी...

सावन सूखा रह गया

सावन सूखा रह गया, सूखे भादो मास विरहन प्यासी धरती कब से, पथ तक कर हार गई पनघट पूछे बाँह पसारे, बदरा क्यों मार गई पनिहारिन भी पोछती अपना अंजन-सार रक्त तप्त अभिसप्त गगन यह, निगल रहा फसलों को बूँद-बूँद कर जल को निगले, क्या दें हम नसलों को धू-धू कर अब जल रही हम सबकी अँकवार कब तक रूठी रहेगी हमसे, अपना मुँह यूॅं फेरे हम तो तेरे द्वार खड़े हैं हृदय हाथ...

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