‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘राम रक्षा चालिसा‘

‘राम रक्षा चालिसा‘ मेरे इस गीत को स्वर दिये हैं -प्रेम पट...

करें राम को याद

विजयादशमी पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं विजयादशमी पर्व पर, कर लें विजयी नाद । गढ़ने निज व्यवहार को,  करें राम को याद ।। करें राम को याद, बने हम कैसे मानव । मानवता पथ छोड़, बने क्यों रे हम दानव । रक्षा करने धर्म, लीजिये कसमा-कसमी । सार्थक तब तो होय, पर्व यह विजयादशमी ।। -रमेश चौह...

जय जय सेना हिन्द की

जय भारत जय भारती, जय जय भारत देश । जय जय सेना हिन्द की, जय जय हिन्द नरेश ।। जय जय हिन्द नरेश, किये पूरन अभिलाषा । जाने सारा विश्व, हिन्द की यह परिभाषा ।। मित्रों के हम मित्र, शत्रु दल के संघारक । मिटे सभी आतंक, घोष सुन जय जय भारत ।। ।। ...

जन-मन विमल करो माँ

हे आदि भवानी, जग कल्याणी, जन मन के हितकारी । माँ तेरी ममता, सब पर समता, जन मन को अति प्यारी ।। हे पाप नाशनी, दुख विनाशनी, जग से पीर हरो माँ । आतंकी दानव, है क्यों मानव, जन-मन विमल करो माँ ...

हिन्दी दिवस

भाषा यह हिन्दी, बनकर बिन्दी, भारत माँ के, माथ भरे । जन-मन की आशा, हिन्दी भाषा, जाति धर्म को, एक करे ।। कोयल की बानी, देव जुबानी, संस्कृत तनया, पूज्य बने । क्यों पर्व मनायें,क्यों न बतायें, हिन्दी निशदिन, कंठ सने ...

गांव बने तब एक निराला

http://www.openbooksonline.com/xn/detail/5170231:BlogPost:799762 सौंधी सौंधी मिट्टी महकेचीं-चीं चिड़िया अम्बर चहके । बाँह भरे हैं जब धरा गगनबरगद पीपल जब हुये मगनगांव बने तब एक निरालादेख जिसे ईश्वर भी बहके । ऊँची कोठी एक न दिखतेपगडंडी पर कोल न लिखतेहै अमराई ताल तलैया,गोता खातीं जिसमें अहके । शोर शराबा जहां नही हैबतरावनि ही एक सही हैचाचा-चाची...

खाक करे है देह को

खाक करे है देह को, मन का एक तनाव । हँसना केवल औषधी, पार करे जो नाव ।। फूहड़ता के हास्य से, मन में होते रोग । करें हास परिहास जब, ध्यान रखें सब लोग ।। बातचीत सबसे करे, बनकर बरगद छाँव। कोयल वाणी बोलिये, तजें कर्ककश काँव ।। धान्य बड़ा संतोष का, जलन बड़ा है रोग । परहित सा सेवा नही, नहीं स्वार्थ सा भोग ।। डोर प्रेम विश्वास का, सबल सदा तो होय । टूटे से...

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