धूप
घृणित विचारो से घिरे, जैसे मेढक कूप ।
कूप भरे निज सोच से, छाय कोहरा घूप ।।
घूप छटे कैसे वहां, बंद रखें हैं द्वार ।
द्वार पार कैसे करे, देश प्रेम का धूप ।।
देश द्रोह विष गंध है, अंधकार का रूप ।
रूप बिगाड़े देश का, बना रहे मरू-कूप ।।
कूप पड़ा है बंद क्यो, खोल दीजिये द्वार ।
द्वार खड़ा रवि प्रेम का, देने को निज धूप ।।
//माहिया//
रंग मले जब होली
मुझको ना भाये
जब हो ना हमजोली ।
मुझको ना भाये
जब हो ना हमजोली ।
रंग गुलाल न भाये
भाये ना होली
जब साजन तड़पाये ।
भाये ना होली
जब साजन तड़पाये ।
-रमेश चौहान
नारी नर अनुहार
बढ़ें पढ़ें सब बेटियां, रखें देश का मान ।
बेटा से कमतर नही, इन पर हमें गुमान ।।
नारी नर का आत्म बल, धरती का श्रृंगार ।
नारी से ही है बना, अपना यह संसार ।।
जग का ऐसा काज क्या, करे न जिसको नार ।
जल थल नभ में रख कदम, दिखा रहीं संसार ।।
प्रश्न उठे ना एक भी, कर लेंती सब काम ।
अवसर की दरकार है, करने को निज नाम ।।
हे नर हॅस कर दीजिये, नारी का अधिकार ।
आधी आबादी देश की, नारी नर अनुहार ।
बेटा से कमतर नही, इन पर हमें गुमान ।।
नारी नर का आत्म बल, धरती का श्रृंगार ।
नारी से ही है बना, अपना यह संसार ।।
जग का ऐसा काज क्या, करे न जिसको नार ।
जल थल नभ में रख कदम, दिखा रहीं संसार ।।
प्रश्न उठे ना एक भी, कर लेंती सब काम ।
अवसर की दरकार है, करने को निज नाम ।।
हे नर हॅस कर दीजिये, नारी का अधिकार ।
आधी आबादी देश की, नारी नर अनुहार ।
जय जय कैलासी
जय जय कैलासी, घट घट वासी, पाशविमोचन, भगवंता ।
जय जय नटनागर, करूणा सागर, जय विघ्नेश्वर, प्रिय कंता ।।
जय जय त्रिपुरारी, जय कामारी, जय गंगाधर, शिवशंकर ।
जय उमा महेश्वर, जय विश्वेष्वर, जय शशिशेखर, आढ्यंकर ।।
(आढ्यंकर- निर्धनो को दान देकर धनी करने वाला )
जय जय नटनागर, करूणा सागर, जय विघ्नेश्वर, प्रिय कंता ।।
जय जय त्रिपुरारी, जय कामारी, जय गंगाधर, शिवशंकर ।
जय उमा महेश्वर, जय विश्वेष्वर, जय शशिशेखर, आढ्यंकर ।।
(आढ्यंकर- निर्धनो को दान देकर धनी करने वाला )
एक प्रश्न अंतस खड़ा
पंथ पंथ में बट गया, आज सनातन धर्म ।
दृष्टि दृष्टि का फेर है, अटल सत्य है मर्म ।।
दृष्टि दृष्टि का फेर है, अटल सत्य है मर्म ।।
परम तत्व अद्वैत है, सार ग्रंथ है वेद ।
द्वैत किये हैं पंथ सब, इसी बात का खेद ।।
द्वैत किये हैं पंथ सब, इसी बात का खेद ।।
मेरा मनका श्रेष्ठ है, बाकी सब बेकार ।
गुरुवर कहते पंथ के, समझो बेटा सार ।।
गुरुवर कहते पंथ के, समझो बेटा सार ।।
जिसे दिखाना सूर्य है, दिखा रहे निज तेज ।
मुक्त कराना छोड़ कर, बांध रखे बंधेज ।।
मुक्त कराना छोड़ कर, बांध रखे बंधेज ।।
मैं मूरख यह सोचता, गुरु से बड़ा न कोय ।
गुरु मेरे भगवान सम, करुं कहे वो जोय ।।
गुरु मेरे भगवान सम, करुं कहे वो जोय ।।
एक प्रश्न अंतस खड़ा, भरता है हुंकार ।
पूजो ना रहबर चरण, पूजो पालन हार ।।
पूजो ना रहबर चरण, पूजो पालन हार ।।
अपनी मंजिल के डगर, पूछे हो जब राह ।
मंजिल जाना छोड़ कर, बैठे क्यों गुमराह ।।
मंजिल जाना छोड़ कर, बैठे क्यों गुमराह ।।
गलत गलत है मान लो
गलत गलत है मान लो, रखे नियत क्यो खोट ।
तेरे इस व्यवहार से, लगा देश को चोट ।।
वैचारिक मतभेद से, हमें नही कुछ क्लेष ।
पर क्यो इसके नाम पर, बांट रहे हो देश ।।
माँ को गाली जो दिये, लिये शत्रु को साथ ।
कैसे उनके साथ हो, बनकर उनके नाथ ।।
तुष्टिकरण के पौध को, सींच रहें जो नीर ।
आज नही तो कल सही, पा़येंगे वो पीर ।।
अंधों से कमतर नही, मूंद रहे जो आंख ।
देश द्रोह के सांप को, पाल रहें है कांख ।।
-रमेश चौहान
प्रश्न लियें हैं एक
मातृभूमि के पूत सब, प्रश्न लियें हैं एक ।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।।
देश प्रेम क्यों क्षीण है, बात नही यह नेक ।।
नंगा दंगा क्यों करे, किसका इसमें हाथ ।
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब
किसको क्या है फायदा, जो देतें हैं साथ ।।
किसे मनाने लोग ये, किये रक्त अभिषेक । मातृभूमि के पूत सब
आतंकी करतूत को, मिलते ना क्यों दण्ड ।
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि के पूत सब
नेता नेता ही यहां, बटे हुये क्यों खण्ड़ ।।
न्याय न्याय ना लगे, बात रहे सब सेक । मातृभूमि के पूत सब
गाली देना देश को, नही राज अपराध ।
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की साध ।।
आजादी का अर्थ यह, हुये क्यों न अतिरेक । मातृभूमि के पूत सब
कैसे कोई कह गया, लेकर मन की साध ।।
आजादी का अर्थ यह, हुये क्यों न अतिरेक । मातृभूमि के पूत सब
मतदाता क्या भेड़ है, नेता लेते हाॅंक ।
वोट बैंक के नाम पर, छान रहें हैं खाॅंक ।
टेर टेर क्यो बोलते, हो बरसाती भेक । मातृभूमि के पूत सब
वोट बैंक के नाम पर, छान रहें हैं खाॅंक ।
टेर टेर क्यो बोलते, हो बरसाती भेक । मातृभूमि के पूत सब
खण्ड़ हुये बहुसंख्य के, अल्प नही अब अल्प ।
भेद भाव को छोड़ कर, किये न काया कल्प।।
हीन एक को क्यों किये, दूजे रखे बिसेक । मातृभूमि के पूत सब
भेद भाव को छोड़ कर, किये न काया कल्प।।
हीन एक को क्यों किये, दूजे रखे बिसेक । मातृभूमि के पूत सब
हिन्दू मुस्लिम हिन्द के, भारत मां के लाल ।
राजनीति के फेर में, होते क्यों बेहाल ।
राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक। मातृभूमि के पूत सब
राजनीति के फेर में, होते क्यों बेहाल ।
राज धर्म के काज को, करते क्यो ना स्व-विवेक। मातृभूमि के पूत सब
सीमा पर सैनिक डटे, संगीन लिये हाथ ।
शीश कफन वह बांध कर, लड़े शत्रु के साथ ।
घर में बैरी देख कर, क्लेष हुये उत्सेक । मातृभूमि के पूत सब
शीश कफन वह बांध कर, लड़े शत्रु के साथ ।
घर में बैरी देख कर, क्लेष हुये उत्सेक । मातृभूमि के पूत सब
(उत्सेक -वृद्वि या ज्यादा)
जागो जागो लोग अब, राग-द्वेष को छोड़ ।
प्रेम देश से तुम करो, साॅठ-गाॅंठ सब तोड़ ।।
आप देश से आप हो, देश आप से हेक । मातृभूमि के पूत सब
(हेक-एक)
प्रेम देश से तुम करो, साॅठ-गाॅंठ सब तोड़ ।।
आप देश से आप हो, देश आप से हेक । मातृभूमि के पूत सब
(हेक-एक)
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