‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

//दोहा मुक्तक-अधीरता//

व्याकुल होकर मन मुकुर, ढूंढ़ रहा है प्यार । प्यार प्राण आधार है, इस बिन जग बेकार ।। जग बेकार कहे सभी, जब मन होय अधीर । अधीरता ही पीर है, तजे इसे संसार ।...

वीर बहादुर

वीर बहादुर तो कभी, होते नही अधीर घाव लगे जब देह पर, सह जाते सब पीर । सह जाते सब पीर, देश की मिट्टी चुमकर । भर लेते सब घाव, देश की बातें गुणकर ।। हर बाधा कर पार, शत्रु को करते चुर चुर। करे प्राण उत्सर्ग, देश पर वीर बहादुर ।। ...

जग का मूल

कर्म ज्ञान है बाटती, विद्यालय की धूल । धूल माथ रखना सदा, जाना मत तुम भूल । भूल सुधारो आप अब, मानवता हो लक्ष्य । लक्ष्य एक है आपका, है जो जग का मूल ।। -रमेश चौह...

//मां भारती पुकारे //

जागो जागो वीर सपूतो. माँ भारती पुकारे । आतंकी बनकर बैरी फिर. छुपछुप है ललकारे ।। उठो जवानो जाकर देखो. छुपे शत्रु पहचानो । मिले जहाँ पर कायर पापी. बैरी अपना मानो ।। काट काट मस्तक बैरी के. हवन कुण्ड पर डालो। जयहिन्द मंत्र उद्घोष करो. जीवन यश तुम पा लो ।। जिनके मन राष्ट्र प्रेम ना हो. बैरी दल के साथी । स्वार्थी हो जो चलते रहते. जैसे पागल हाधी ।। छद्म...

करते क्यों तकरार

तन पाने के पूर्व ही. किये प्यार हो आप ।अपने अनुरुप छांट कर. पाये हो माँ बाप ।। फिर क्यों तुम यह मानते. पहले होवे प्यार ।शादी के पहले भला. करते क्यों तकरार ।। लडते रहते है सभी. बंधु बहन तो लाख ।भागे ना घर छोड़ कर. देह किये ना खाख॥ सुनकर पति के बात क्यों. छोडे पति के द्वार ।ससुरे आंगन छोड़ कर. बैठी वह मझदार ।-रमेश चौहान...

अविश्वास

//चोका// घरेलू हिंसा नीव खोद रहा है परिवार का अस्तित्व खतरे में अहम बोले वहम पाले रखे सहनशक्ति खो गया कहीं पर शिक्षा के आए जागरूकता आए प्यार विश्वास सहमा डरा हुआ कानून देख एक पक्षीय लागे पहचान खो ओ पति पत्नी एक दूजे को यहाॅं खूब आंख दिखाये । -रमेश चौहा...

राम नाम है सत्य

नश्वर इस संसार में, राम नाम है सत्य । हर जीवन के अंत का, होत एक ही गत्य । होत एक ही गत्य, प्राण जब तन को छोड़े । आत्म मुग्ध हो आत्म, जगत से नाता तोड़े ।। सुन लो कहे ‘रमेश‘, रामसीता भज सस्वर । कर लो निज पहचान, दृश्य दुनिया है नश्वर ।। ...

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