‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

तेरे नाम का, हमको है सहारा

1.         है नवरात आस्था का महापर्व जगमगात ज्योति घट घट में प्राणी प्राणी हर्शात ।। 2. पापों का घेर, मां भवानी तोडि़ये । सुनिये टेर, स्नेह से प्रीत गूथ इंसा इंसा जोडि़ये ।। 3. तेरे नाम का हमको है सहारा । भव सागर एक अंधी डगर, नही कोई हमारा ।। 4. एक नजर इधर भी देखिये । फैल रहें हैं, भ्रश्टाचार की बेल, मां इसे...

मां आदि भवानी है

हाइकू एक पत्थर भगवान हो गया आस्था से रंगे । आशा विश्वास श्रद्धा जगाये रखे मिट्टी मूरत । मैं भक्त हूं मां आदि भवानी है सृष्टि रचक । मातु बिराजे श्रद्धा के नवरात कण-कण में । धर्म धारक अधर्म विदारक मातु भवानी । शक्ति दीजिये जग में मानवता अक्षुण रहे । -रमेश चौह...

जग जननी मां आइये ..

जग जननी मां आइये, मेरी कुटिया आज । मुझ निर्धन की टेर सुन, रखिये मेरी लाज ।। निर्धन से तो है भला, कचरा तिनका घास । दीनता के अभिशाप से, दुखी आपका दास ।। मानव सा माने नहीं, जग का सभ्य समाज ।। जग जननी मां आइये ... बेटी बहना है दुखी, देख जगत व्यभिचार । लोक लाज अब मिट रहे, नवाचार की मार ।। लोग यहां घर छोड़ के, दिखला रहे मिजाज । जग जननी मां आइये.... घर-घर...

अफसाना ये प्यार का

अफसाना ये प्यार का, जाने ना बेदर्द । हम हॅस हॅस सहते रहे, बांट रही वह दर्द।। लम्हा लम्हा इष्क में, बहाते रहे अश्क । आशकीय है बेखुदी, इसमें कैसा रश्क ।। वो तो खंजर घोपने, मौका लेती खोज । उनकी लंबी आयु की, करूं दुवा मैं रोज ।। पत्थर पर भी फूल जो, चढ़ते हो हररोज । पत्थर भी भगवान तो, हो जाते इकरोज ।। ...

अति पावन मंतव्य

जन्म लिये इस देश में, मरना भी इस देश । रक्षा करने देश का, काम करें लवलेश ।। केवल मरना मारना, राष्ट्र धर्म ना होय । राष्ट्र धर्म गंभीर है, समझे जी हर कोय ।। सभी नागरिक जो करें, निज मौलिक कर्तव्य । राष्ट्र भक्त सच्चे वही, अति पावन मंतव्य ।। खास आम हर कोय तो, जतलाते अधिकार । होते क्या कर्तव्य हैं, समझे ना संसार ।। ...

जय जय जय गणराज प्रभु....

जय जय जय गणराज प्रभु, जय गजबदन गणेश । विघ्न-हरण मंगल करण, हरें हमारे क्लेश।। गिरिजा नंदन प्रिय परम, महादेव के लाल । सोहे गजमुख आपके, तिलक किये हैं भाल ।। तीन भुवन अरू लोक के, एक आप अखिलेश । जय जय जय गणराज प्रभु.... मातु-पिता के आपने, परिक्रमा कर तीन । दिखा दियेे सब देेव को, कितने आप प्र्रवीन । मातुु धरा अरू नभ पिता, सबको दे संदेश  ।। जय जय...

कवि बन रहे हजार

वाह वाह के फेर में, कवि बन रहे हजार । ऐसे कविवर पाय के, कविता है बीमार ।। केवल तुकबंदी दिखे, दिखे ना काव्य तत्व । नही शिल्प व विधान है, ना ही इनके सत्व ।। आत्म मुग्ध तो है सभी, पाकर झूठे मान । भले बुरे इस काव्य की, कौन करे पहचान ।। पाठक स्रोता तो सभी, करते केवल वाह । अभ्यासी जन को यहां, कौन बतावें राह ।। बतलाना चाहे अगर, कोई कभी कभार । बुरा...

Blog Archive

Popular Posts

Categories