‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

ये अंधा कानून है,

ये अंधा कानून है,  कहतें हैं सब लोग । न्यायालय तो ढूंढती, साक्षी करने  न्याय ।  आंच लगे हैं सांच को, हॅसता है अन्याय ।। धनी गुणी तो खेलते, निर्धन रहते भोग । ये.... तुला लिये जो हाथ में, लेती समता तौल ।  आंखों पर पट्टी बंधी, बन समदर्शी कौल ।। कहां यहां पर है दिखे, ऐसा कोई योग । ये... दोषी बाहर घूमते, कैद पड़े...

बाजारवाद

फसे बाजारवाद में, देखो अपने लोग । लोभ पले इस राह में, बनकर उभरे रोग ।। दो पौसे के माल को, बेचे रूपया एक । रीत यही व्यवसाय का, लगते सबको नेक । टोटा कर दो माल का, रखकर निज गोदाम । तब जाके तुम बेचना, खूब मिलेंगे दाम ।। असल नकल के भेद को, जान सके ना कोय । तेरे सारे माल में, असल मिलावट होय ।। टैक्स चुराने की कला, पहले जाके सीख । वरना इस व्यवसाय में,...

अगर है तेरी हिम्मत

तेरी हिम्मत देख कर, हुये लोग सब दंग । लड़ गैरों के साथ में, करते कितने तंग ।। करते कितने तंग, जरा सी गलती देखे । दौड़े दांतें चाब, डंड हाथों में लेके । अपनी बारी देख, आपकी क्या है किम्मत । अपनी गलती देख, अगर है तेरी हिम्मत ।। ...

नश्वर इस संसार में

नश्वर इस संसार में, नाशवान हर कोय । अपनी बारी भूल कर, लोग जगत में खोय ।। जन्म लिये जो इस जगत, जायेंगे जग छोड़ । जग माया में खोय जो, जायेंगे मुख मोड़ ।। सार जगत में है बचे, यश अपयश अरू नाम । सोच समझ कर रीत को, कर लो अपना काम ।। ...

आॅंख खोल कर देख लो

रोजगार की चाह में, बने हुये परतंत्र । अंग्रेजी के दास हो, चला रहे हैं तंत्र ।। अपनी भाषा भूल कर, क्या समझोगे मर्म । अंग्रेजी में बात कर, करे कहां कुछ शर्म ।। है भाषा यह विश्व की, मान गये हम बात । पर अपनो के मध्य में, बनते क्यों बेजात ।। आॅंख खोल कर देख लो, चीन देश का काम । अपनी बोली में बढ़े, किये जगत में नाम ।। हिन्दी भाषी भी यहां, देवनागरी छोड़...

रोमन लिखते आप क्यों

रोमन लिखते आप क्यों, देवनागरी छोड़ अपनी भाषा और लिपि, जगा रही झकझोर ।। जगा रही झकझोर, याद पुरखो का कर लो । जिसने खोई जान, सीख उनकी तुम धर लो ।। रहना नही गुलाम, रहो चाहे तुम जोगन । हुये आजाद आप, लिखे क्यो अबतक रोमन ।...

चिंतन के दोहे

आतंकी करतूत से, सहमा है संसार । मिल कर करे मुकाबला, कट्टरता को मार ।। कट्टरता क्यों धर्म में, सोचो ठेकेदार । मर्म धर्म का यही है, मानव बने उदार ।। खुदा बने खुद आदमी, खुदा रहे बन बूत । करें खुदा के नाम पर, वह ओछी करतूत ।। छिड़ा व्यर्थ का वाद है, कौन धर्म है श्रेष्ठ । सार एक सब धर्म का, सार ग्र्रहे सो ज्येष्ठ ...

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