‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

लोकतंत्र का कमाल देखो (सार छंद)

 लोकतंत्र का कमाल देखो, हमसे मांगे नेता । झूठे सच्चे करते वादे, बनकर वह अभिनेता ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, रंक द्वार नृप आये । पाॅंच साल के भूले बिसरे, फिर हमको भरमाये ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, नेता बैठे उखडू । बर्तन वाली के आगे वह, बने हुये है कुकडू ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, एक मोल हम सबका । ऊॅंच नीच देखे ना कोई, है समान हर तबका ।। लोकतंत्र...

चुनावी दोहे

लोकतंत्र के राज में, जनता ही भगवान । पाॅंच साल तक मौन रह, देते जो फरमान । द्वार द्वार नेता फिरे, जोड़े दोनो हाथ । दास कहे खुद को सदा, मांगे सबका साथ ।। एक नार थी कर रही, बर्तन को जब साफ । आकर नेता ने कहा, करो मुझे तुम माफ । काम पूर्ण कर ना सका, जो थी मेरी बात । पद गुमान के फेर में, भूल गया औकात ।। निश्चित ही इस बार मैं, कर दूंगा सब काज । समझ मुझे...

एक मुठ्ठी की भांति (तांका)

1. क्यों भूले तुम ? अपनी मातृभाषा माॅं का आॅंचल कभी खोटा होता है ? खोटी तेरी किस्मत । 2. दूर के ढोल मधुर लगे बोल नभ में सूर्य धरातल से छोटा बहुत सुहाना है । 3. आतंकवाद धार्मिक कट्टरता नही सीखाता बाइबिल कुरान हिन्द का गीता पुराण । 4. स्वीकार करें दूसरो का सम्मान क्यों थोपते हो ? पंथ धर्म विचार सभी खुद नेक हैं । 5. गरज रहा आई.एस.आई.ई सचेत रहे हिन्दू...

छोड़ो झगड़ा नाम का

छोड़ो झगड़ा नाम का, ईश्वर अल्ला एक । खुदा की खुदाई भली, प्रभु की प्रभुता नेक ।। धर्म धरे विश्वास से, सभी धर्म है नेक । कट्टरता के शूल से, मानव पथ ना छेक ।। मानवता के राह चल, आप मनुष्य  महान । दीन हीन को साथ ले, गढ़ लें रम्य जहान ।। दीन हीन सब तृप्त हो, सुख मय हो दिन रैन । भेद भाव अब खत्म हो, मिले सभी को चैन ।। अपनी सेवा आप कर, निज रूप को...

बंधन

मृत्युलोक माया मोह अमर । मोह पास ही जग लगे समर लोग कहे यह मेरा अपना । संत कहे जगत एक सपना जीते जो जग में यह माया । मिट्टी समझे अपनी काया स्वार्थ के सब रिश्ते नाते । स्नेही जीवन अनमोल बनाते आसक्ति प्रीत में भेद करें । कमल पत्र सा निर्लिप्त रहे है अनमोल प्रीत का बंधन । रहे सुवासित जैसे चं...

कब समझेगा मर्म रे

हिन्दू मुस्लिम राग, छोड़ दे रे अब बंदे । कट्टरता को छोड़, छोड़ सब गोरख धंधे ।। धर्म पंथ का काज, करे पावन तन मन को । पावन पवित्र स्नेह, जोड़ती है जन जन को ।। राग द्वेष को त्याग कर अब, कर ले सब से प्रेम रे । मानव मानव सब एक है, कब समझेगा मर्म रे ...

द्वारिका पुरी सुहानी रे भैया

द्वारिका पुरी सुहानी रे भैया नही कोई इसका सानी है । बांके बिहारी तो यहां है रहते-2 जहां उसकी राजधानी है ।। सागर श्याम को जगह है दीन्हो विश्वकर्मा ने यह रचना है कीन्हो कान्हा अपना वास जहां है लीन्हो वसे है जहां उसके पटरानी रे भैया नही कोई इसका सानी है । ऊंचे ऊंचे जहां महल अटारी रथ घोड़े का अद्भूत सवारी देखे भौचक्क सुदामा संगवारी आंख भर आये हैं पानी...

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