‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

दो मुक्तक

फूलों की महक घड़ी दो घड़ी हीओठों की चहक घड़ी दो घड़ी हीअक्षय रहता श्वेद, सूख कर भीश्रम में तू दहक घड़ी दो घड़ी ही किसी को नाम से वास्ता हैकिसी को काम से वास्ता हैयहां मैं मस्त हूँ मस्ती मेंमुझे तो जाम से वास्ता ...

मूल्य नीति, हमें समझ ना आय

टेक्स हटाओं तेल से, सस्ता कर दो दाम ।जोड़ो टेक्स शराब पर, चले बराबर काम ।। अच्छे दिन के स्वप्न को, ढूंढ रहे हैं लोग ।बढ़े महंगाई कठिन, जैसे कैंसर रोग ।। कभी व्यपारी आंग्ल के, लूट लिये थे देश ।आज व्यपारी देश के, बांट रहे हैं क्लेश ।। तने व्यपारी आन पर, विवश दिखे सरकार ।कल का हो या आज का, सब दल है लाचार ।। मूल्य नीति व्यवसाय की, हमें समझ ना आय ।दस...

मदिरा पीना क्या पीना है

मदिरा पीना भी क्या पीना है ऐसा  जीना भी क्या जीना है पीना है तो दुख पीकर देखो फिर कहना चौड़ा यह सीना ...

माँ

माँ, माँ ही रहती सदा, पूत रहे ना पूत । नन्हे बालक जब बढ़े, माँ को समझे छूत ।। माँ को समझे छूत, जवानी ज्यों-ज्यों आये । प्रेम-प्यार के नाम, प्यार माँ का बिसराये ।। माने बात ‘रमेश‘, पत्नि जो जो अब कहती । बचपन जैसे कहाँ, आज माँ, माँ ही रहती ।। ...

ऐसी शिक्षा नीति

हमको तो अब चाहिये, ऐसी शिक्षा नीति ।राष्ट्र प्रेम संस्कार का, जो समझे हर रीति ।।जो समझे हर रीति, आत्म बल कैसे देते ।कैसे शिक्षित लोग, सफल जीवन कर लेते ।शिक्षा का आधार, हरे जीवन के गम को ।कागज लिखे प्रमाण, चाहिये ना अब हमको ...

मन में एक सवाल है

मन में एक सवाल है, उत्तर की दरकार ।आखिर कब से देश में, पनपा भ्रष्टाचार ।।पनपा भ्रष्टाचार, किये नेता अधिकारी ।एक अँगूठा छाप, दिखे क्या भ्रष्टाचारी ।।शिक्षित लोग "रमेश",  इसे फैलाये जन में ।कैसी शिक्षा नीति, सोच कर देखें मन में ...

शिक्षा में संस्कार हो

शिक्षा में संस्कार हो, कहते हैं सब लोग ।शिक्षा में व्यवहार का, निश्चित हो संजोग ।निश्चित हो संजोग, समझ जीवन जीने का ।सहन शक्ति हो खास, कष्ट प्याला पीने का ।पर दिखता है भिन्न, स्कूल के इस दीक्षा में ।टूट रहा परिवार, आज के इस शिक्षा में ...

कैसे कह दें

कैसे कह दें झूठ में, हमें न तुमसे प्यार । मन अहलादित है मगर, करते कुछ तकरार ।। करते कुछ तकरार प्यार में, खुद को अजमाते । कितना गहरा, हृदय समुन्दर, गोता खाते ।। ढूंढ रहा हूँ, माणिक मोती, यूँ ही ऐसे । मिला नही कुछ, झूठा बनने, कह दें कैसे ...

मैं और मजदूर

//मैं और मजदूर// मैं एक अदना-सा प्रायवेट स्कूल का टिचर और वह श्रम साधक मजदूर । मैं दस बजे से पांच बजे तक चारदीवार में कैद रहता स्कूल जाने के पूर्व विषय की तैयारी स्कूल के बाद पालक संपर्क और वह नौ बजे से दो बजे तक श्रम की पूजा करता इसके पहले और बाद दायित्व से मुक्त । मेरे ही स्कूल में उनके बच्चे पढ़ते हैं जिनका मासिक शुल्क महिने के महिना अपडेट रहता...

कल और आज

//कल और आज// कल जब मैं स्कूल में पढ़ता था, मेरे साथ पढ़ती थी केवल एक लड़की आज मैं स्कूल में पढ़ाते हुये पाता हूँ कक्षा में दस छात्र और बीस छात्रा । कल जब मैं शिक्षक का दायित्व सम्हाला ही था स्कूल में सांस्कृतिक कार्यक्रम कराने हेतु एक छात्रा को सहमत कराने में पसीना आ जाता था और आज एक छात्र को तैयार करने में पसीना क्या खून जलाना पड़ रहा है । कल जब मेरा...

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