अटल नियम है सृष्टि की, देखें आंखे खोल ।
प्राणी प्राणी एक है, आदमी पिटे ढोल ।।
इंसानी संबंध में, अब आ रही दरार ।
साखा अपने मूल से, करते जो तकरार ।।
खग-मृग पक्षी पेड़ के, होते अपने वंश ।
तोड़ रहे परिवार को, इंशा देते दंश ।।
कई जाति अरू वर्ण के, फूल खिले है बाग ।
मिलकर सब पैदा करे, इक नवीन अनुराग ।।
वजूद बगिया के बचे, हो यदि नाना फूल...
भूकंप

कांप रही धरती नही, कांप रहे इंसान ।
झटके खाकर भूकंप के, संकट में है प्राण ।।
कितने बेघर हैं हुये, कितने खोये जान ।
मृत आत्माओं को मिले, परम श्ाांति भगवान ।।
संकट के इस क्षण में, हम हैं उनके साथ ।
जो बिछुड़े परिवार से, जो हो गये अनाथ ।।
कंधे कंधे जोड़ कर, उठा रहे...
ये कैसा प्रतिकार

हुआ मौत भी खेल क्यों, ये कैसा प्रतिकार ।
उस गजेन्द्र के मौत का, दिखे न जिम्मेवार ।।
दिखे न जिम्मेवार, सोच कर आये रोना ।
मौसम का वह मार, फसल का चौपट होना ।।
बेसुध वह सरकार, विरोधी लाये बिनुआ ।पोलिस नेता भीड़, रहे फिर क्यों मौत हुआ ।।
...
प्यार हुआ व्यपार (दोहे)
लगता है अब प्यार भी, हुआ है इक व्यपार ।
नाप तौल के कर रहे, छोरा छोरी प्यार ।।
छोरा देखे रूप को, सुंदर तन की चाह ।
जेब परख कर छोकरी, भरती ठंडी आह ।।
राधा मीरा ना बने, बने नही है राम ।
गोपी सारी छोकरी, छोकरा बने श्याम ।।
पहले कहते लोग थे, मत हो बेकारार ।
प्यार किया जाता नही , हो जाता है प्यार ।।
करने से होता नही, जब किसी को प्यार...
बसे प्राण तो गांव के खेत में (शक्ति छंद)

शहर के किनारे इमारत जड़े ।
हरे पेड़ हैं ढेर सारे खड़े ।
सटे खेत हैं नीर से जो भरे ।
कृषाक कुछ जहां काम तो हैं करे ।।
हमें दे रहा द्श्य संदेश है ।
गगन पर उड़े ना हमें क्लेश है ।
जमी मूल है जी तुम्हारा सहीं ।
तुम्हें देख जीना व मरना यहीं ।।
करें काज अपने चमन के...
बढ़ायें धरा धाम के शान को (शक्ति छंद)
कई लोग पढ़ लिख दिखावा करे ।जमी काज ना कर छलावा करे ।।मिले तृप्ति ना तो बिना अन्न के ।रखे क्यो अटारी बना धन्न के ।।
भरे पेट बैठे महल में कभी ।मिले अन्न खेती किये हैं तभी ।।सभी छोड़ते जा रहे काम को ।मिले हैं न मजदूर भी नाम को ।।
न सोचे करे कौन इस काज को ।झुका कर कमर भेद दें राज को ।।चलें आज हम रोपने धान को ।बढ़ायें धरा धाम के शान को ।...
कुन्डलिया छन्द (विषय- बेरोजगारी)
पढ़े-लिखे युवती युवक, ढूंढ रहें हैं काम ।पढ़ लिख कर सब चाहते, लेना इसका दाम ।।लेना इसका दाम, किये हैं व्यय अतिभारी ।अभियंता की चाह, दिखाते अब लाचारी ।।बनने तक को प्यून, पंक्ति में तैयार दिखे ।बनने को सर्वेंट, सभी ये हैं पढ़े-लिखे ।।-रमेश चौहा...
तुम (मुक्तक)

तुम समझते हो तुम मुझ से दूर हो ।
जाकर वहां अपने में ही चूर हो ।।
तुम ये लिखे हो कैसे पाती मुझे,
समझा रहे क्यों तुम अब मजबूर हो ।।
...
कहो ना (मुक्तक)

कहो ना कहो ना मुझे कौन हो तुम ,
सता कर सता कर मुझे मौन हो तुम ।
कभी भी कहीं का किसी का न छोड़े,
करे लोग काना फुसी पौन हो तुम ।।
.................................
पौन-प्राण
...
व्यवहार (आल्हा छंद)
हमें चाहिये सेवा करना, मातु-पिता वृद्धो के खास ।
हमें चाहिये बाते करना, मीठी-मीठी लेकर विश्वास ।।
चलना चाहिये सभी जन को, नीति- रीति के जो सद् राह ।
भले बुरे लोग सभी कहते, यह मानव जीवन की चाह ।।
भला लगे कहने सुनने में, बात आदर्श की सब आज ।
बड़ा कठिन हैं परंतु भैय्या, आत्मसात करना यह काज ।
चाहिये चाहिये सब कहते, पर तन मन से जाते हार ।
बात कहे ना...
मुक्तक
1.पीसो जो मेंहदी तो, हाथ में रंग आयेगा ।
बोये जो धान खतपतवार तो संग आयेगा ।
है दस्तुर इस जहां में सिक्के के होते दो पहलू
दुख सहने से तुम्हे तो जीने का ढंग आयेगा ।।
2. अंधियारा को चीर, एक नूतन सबेरा आयेगा ।
राह बुनता चल तो सही तू, तेरा बसेरा आयेगा ।।
हौसला के ले पर, उडान जो तू भरेगा नीले नभ ।
देख लेना कदमो तले वही नभ जठेरा आयेगा ।
...
आज और कल (दोहे)
1 .नई पुरानी बात में, किसे कहे हम श्रेष्ठ ।
एक अंध विश्वास है, दूजा फैशन प्रेष्ठ ।। प्रेष्ठ=परमप्रिय
2. तना खड़ा है मूल पर, लगे तना पर फूल ।
रम्य तना का फूल है, जमे मूल पर धूल ।।
3. पानी दे...
भूख (कुण्डलियां)
सही गलत का फैसला, कर ना पाये भूख ।
उदर भरे से काम है, चाहे मिले बदूख ।।
चाहे मिले बदूख, मौत तो भूख मिटाये ।
दुख दायी अति भूख, भूख तो सहा न जाये ।
रो रो कहे ‘रमेश‘ , दीनता की बात यही ।
सब दुख देना नाथ, न देना दुख भूख सही ।।
नाना प्रकार भूख के, होय सभी आक्रांत ।कितने भूखे लोभ के, होय कभी ना शांत ।।होय कभी ना शांत, होय जो तन का भूखा ।उदर क्षुधा को लोग,...
नारी ही मां होत है (दोहा)
काट रहे उस साख को, जिसमें बैठे आप ।
कन्या को क्यो कोख में, कर देते हो साफ ।।
कन्या तो है सृष्टि की, इक अनुपम सौगात ।
माॅं बहना अरू पत्नि वह, मानव की अतिजात ।।
जीवन रथ के चक्र दो, इक नर दूजा नार ।
रख दोनो में संतुलन, जीवन धुरी सवार ।।
नारी ही मां होत है, जिससे चलती सृष्टि ।
करती रहती जो सदा, प्रेम सुधा की वृष्टि ।।
जीवन साथी चाहिये, हर नर को तो...
अंतरमन में रखूं समेटे.
अंतरमन में रखूं समेटे, हम सब की जो है यारी ।
छुटपन की हम सखी सहेली, इक दूजे को प्यारी ।।
साथ-साथ हम पढ़े-लिखें हैं, खेले कूदे साझा ।
किये शरारत इक दूजे से, स्मरण हुई अब ताजा ।।
शिशु से किशोरी भई हम तो, गई समय मनुहारी ।
पढ़ाई स्कूल की पूर्ण हुई, बिछुड़न की अब बारी ।। अंतरमन में रखूं समेटे....
‘रश्मि‘ बड़ी भोली-भाली तू, बात सभी सह जाती ।
ध्यान सभी...
प्रीत के दोहे
कितनी विचित्र बात है, कैसे खोलू राज ।
होकर मेरी जिंदगी, वह मुझसे नाराज ।।
कुछ ना कुछ तो बात है, लगी मुझे वह खास ।
जीवन में पहली दफा, हुआ कुछ एहसास ।।
जीवन जो बेरंग था, रंगीन हुआ आज ।
चहक उठी जो कोयली, झनक उठे मन साज ।
दिल की दिल से बात है, समझ रहे दिलदार।
उनके मेरे प्रीत को, जाने ना संसार ।।
...
Blog Archive
-
▼
2015
(97)
-
▼
अप्रैल
(16)
- अटल नियम है सृष्टि की
- भूकंप
- ये कैसा प्रतिकार
- प्यार हुआ व्यपार (दोहे)
- बसे प्राण तो गांव के खेत में (शक्ति छंद)
- बढ़ायें धरा धाम के शान को (शक्ति छंद)
- कुन्डलिया छन्द (विषय- बेरोजगारी)
- तुम (मुक्तक)
- कहो ना (मुक्तक)
- व्यवहार (आल्हा छंद)
- मुक्तक
- आज और कल (दोहे)
- भूख (कुण्डलियां)
- नारी ही मां होत है (दोहा)
- अंतरमन में रखूं समेटे.
- प्रीत के दोहे
-
▼
अप्रैल
(16)
Popular Posts
-
मानवता हो पंगु जब, करे कौन आचार । नैतिकता हो सुप्त जब, जागे भ्रष्टाचार ।। प्रथा कमीशन घूस हैे, छूट करे सरकार । नैतिकता के पाठ का,...
-
जिसे भाता ना हो, छल कपट देखो जगत में । वही धोखा देते, खुद फिर रहे हैं फकत में ।। कभी तो आयेगा, तल पर परिंदा गगन से । उड़े चाहे ऊॅचे, मन...
-
चरण पखारे शिष्य के, शाला में गुरू आज । शिष्य बने भगवान जब, गुरूजन के क्या काज ।। गुरूजन के क्या काज, स्कूल में भोजन पकते । पढ़ना-लिखना छ...
-
गणेश वंदना दोहा - जो गणपति पूजन करे, ले श्रद्धा विश्वास । सकल आस पूरन करे, भक्तों के गणराज ।। चौपाई हे गौरा गौरी के लाला । हे ल...
-
योग दिवस के राह से, खुला विश्व का द्वार । भारत गुरू था विश्व का, अब पुनः ले सम्हार ।। गौरव की यह बात है, गर्व करे हर कोय । अपने ही इस...
-
लोकतंत्र के राज में, जनता ही भगवान । पाॅंच साल तक मौन रह, देते जो फरमान । द्वार द्वार नेता फिरे, जोड़े दोनो हाथ । दास कहे खुद को सदा, म...
-
25.10.16 एक मंत्र है तंत्र का, खटमल बनकर चूस। झोली बोरी छोड़कर, बोरा भरकर ठूस ।। दंग हुआ यह देख कर, रंगे उनके हाथ । मूक बधिर बन आप ही, ...
-
प्रेम का मै हू पुजारी, प्रेम मेरा आन है । प्रेम का भूखा खुदा भी, प्रेम ही भगवान है ।। वासना से तो परे यह, शुद्ध पावन गंग है । जीव में जी...
-
चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग । शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।। पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार । उद...
-
मदिरापान कैसा है, इस देश समाज में । अमरबेल सा मानो, फैला जो हर साख में ।। पीने के सौ बहाने हैं, खुशी व गम साथ में । जड़ है नाश का दार...
Categories
- अतुकांत (15)
- अध्यात्म (1)
- अनुष्टुप छंद (1)
- अमृत ध्वनि (4)
- आल्हा छंद (4)
- उल्लाल छंद (2)
- उल्लाला छंद (5)
- कहमुकरियां छंद (3)
- कुंडलियां (4)
- कुकुभ छंद (5)
- कुण्डलियां (105)
- गंगोदक सवैया (1)
- गजल (6)
- गीत (4)
- गीतिका छंद (8)
- घनाक्षरी (3)
- घनाक्षरी छंद (9)
- चवपैया छंद (2)
- चिंतन (4)
- चोका (16)
- चौपाई (4)
- चौपाई गीत (1)
- चौपाई छंद (6)
- चौबोला (1)
- छंद माला (1)
- छंदमाला (1)
- छन्न पकैया छंद (3)
- छप्पय छंद (5)
- तांका (7)
- तुकबंदी (2)
- तुकांत (20)
- त्रिभंगी छंद (7)
- त्रिवेणी (1)
- त्रिष्टुप छंद (1)
- दुर्मिल सवैया (1)
- देशभक्ति (10)
- दोहा (6)
- दोहा मुक्तक (4)
- दोहा-गीत (12)
- दोहे (99)
- नवगीत (11)
- नारी (1)
- पद (1)
- भजन (5)
- माहिया (1)
- मुक्तक (11)
- राजनैतिक समस्या (3)
- राधिका छंद (1)
- रूपमाला छंद (2)
- रोला छंद (4)
- रोला-गीत (2)
- वर्ण पिरामिड (7)
- विविध (1)
- शक्ति छंद (3)
- शब्दभेदी बाण (3)
- शिखरिणी छंद (1)
- शोभन (3)
- श्रृंगार (2)
- सजल (1)
- सरसी छंद (7)
- सवैया (1)
- सामाजिक समस्या (12)
- सार छंद (16)
- सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक (6)
- हरिगीतिका (1)
- हाइकू (4)
- mp3 (6)