‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

मनहरण घनाक्षरी किसे कहते हैं जानिए मनहरण घनाक्षरी में

वर्ण-छंद घनाक्षरी, गढ़न हरणमन
नियम-धियम आप, धैर्य धर  जानिए ।।
आठ-आठ आठ-सात, चार बार वर्ण रख
चार बार यति कर,  चार पद तानिए ।।
गति यति लय भर, चरणांत गुरु धर
साधि-साधि शब्द-वर्ण, नेम यही मानिए ।
सम-सम सम-वर्ण, विषम-विषम सम, 
चरण-चरण सब, क्रम यही पालिए ।।




घनाक्षरी की परिभाषा घनाक्षरी में (प्रकार सहित)

रखिये चरण चार, चार बार यति धर
तीन आठ हर बार, चौथे सात आठ नौ ।
आठ-आठ आठ-सात, आठ-आठ आठ-आठ
आठ-आठ आठ-नव, वर्ण भार गिन लौ ।।
आठ-सात अंत गुरु, ‘मन’ ‘जन’ ‘कलाधर’,
अंत छोड़ सभी लघु, जलहरण कहि दौ ।
गुरु लघु क्रमवार, नाम रखे कलाधर
नेम कुछु न विशेष, मनहरण गढ़ भौ ।।

आठ-आठ आठ-आठ, ‘रूप‘ रखे अंत लघु
अंत दुई लघु रख, कहिये जलहरण ।
सभी वर्ण लघु भर, नाम ‘डमरू’ तौ धर
आठ-आठ सानुप्रास, ‘कृपाण’ नाम करण ।।
यदि प्रति यति अंत, रखे नगण-नगण
हो ‘विजया’ घनाक्षरी, सुजश मन भरण ।
आठ-आठ आठ-नव, अंत तीन लघु रख
नाम देवघनाक्षरी, गहिये वर्ण शरण ।।
-रमेश चौहान

प्रभाती दोहे




चीं-चीं चिड़िया चहकती, मुर्गा देता बाँग ।
शीतल पवन सुगंध बन, महकाती सर्वांग ।।

पुष्पकली पुष्पित हुई, निज पँखुडियाँ प्रसार ।
उदयाचल में रवि उदित, करता प्राण संचार ।।

जाग उठे हैं नींद से, सकल सृष्टि संसार ।
जागो जागो हे मनुज, बनों नहीं लाचार ।।

बाल समय यह दिवस का, अमृत रहा है बाँट ।
आँख खोल कर पान कर, भरकर अपनी माँट ।।
(माँट-मिट्टी का घड़ा)

वही अभागा है जगत, जो जागे ना प्रात ।
दिनकर दिन से कह रहा, रूग्ण वही रह जात ।।


-रमेश चैहान

मेरा जीवन

मेरा जीवन एक धरोहर । कभी सुर्ख तो कभी मनोहर 
मेरा जीवन है बच्चों का । स्वप्न स्नेहिल प्रिय सच्चों का

गढ़ना है मुझको जीवन पथ । दौड़ सके जिसमें उनका रथ
दिन का सूरज दीप निशा का । प्रहरी बनाना सभी दिशा का 

संस्कारों की ज्योति जलानी । बचा सके जो मेरा पानी
 देश बड़ा है पहले जाने । बड़ा स्वर्ग से इसको माने

जिस धरती पर देह धरा है । वही धरा तो स्वर्ण खरा है
फिर पूजे वह देव सनातन । बांटे सबको वह अपनापन
-रमेश चौहान

कोरोना महामारी पर दोहे

देख महामारी कहर, सारी दुनिया दंग ।
कहना सबका एक है, रहना घर में बंद ।
समय परिस्थिति देख कर, करता है जो काम ।
अजर अमर इतिहास में, अंकित करता नाम ।
आंधी अंधा होत है, कर सके न पहचान ।
कौन दीन अरु है धनी, कौन निरिह बलवान ।।
-रमेश चौहान

सभ्यसमाज

सभ्यसमाज
एक कुशल माली
बेटी की पौध
रोपते जतन से
पल्लवित होकर
नन्ही सी पौध
अटखेलियां करे
गुनगुनाती हुई
पुष्पित होती
महके चारो ओर
करे जतन
तोड़े ना कोई चोर
जग बगिया
बेटी जिसकी शोभा
गढ़े गौरव गाथा ।

ममता का आंचल

तारें आकश
दीनकर प्रकाश
धरती रज
समुद्र जल निधि
ईश्वर दया
माप सका है कौन
जगत मौन
ममता का आंचल
गोद में शिशु
रक्त दान करती
वात्सल्य स्नेह वह

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