‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

दासता गढ़ते नव

नव अंग्रेजी वर्ष में, युवा मस्त हैं हिंद ।
भारतीय परिवेश को, भूल आंग्ल के बिंद ।।
भूल आंग्ल के बिंद, दासता किसको कहते ।
तज अपनी पहचान, दासता में ही रहते ।
तजे देह जब श्वास, नाम होता उसका शव ।
वैचारिक परतंत्र, दासता गढ़ते नव ।।

प्रेमी पागल एक सा

प्रेमी पागल एक सा, जैसे होते भक्त ।
होकर जगत निशक्त वह, प्रेमी पर आसक्त ।।

चंदन तरु सम प्रेम है, जिसका अचल सुगंध ।
गरल विरह की वेदना, सुधा मिलन अनुबंध ।।

उलझ गया है न्याय

मुझ से बढ़कर तंत्र है, सोच रहा है राम ।
बाबर पहले या अवध, किससे मेरा नाम ।।

भारत के इस तंत्र में, उलझ गया है न्याय ।
राम पड़ा तिरपाल पर, झेल रहा अन्याय ।।

राष्ट्रवाद

धर्मवाद के फेर में, राष्ट्रवाद है फेल ।
खेलें हैं जब धर्म पर, राजनीति का खेल ।

राजनीति में मान कर, जाति धर्म में भेद ।
मतदाता को बांटना, लोकतंत्र का छेद ।।

आन-बान इस देश का, जो रखते सम्हाल ।
जीते रहते देश पर, लिये मौत का ढाल ।।

राष्ट्रवाद पर प्रश्न क्यों, खड़ा किये हैं लोग ।
जिसके कारण आज तो, दिखे देश में रोग ।।

निज मौलिक कर्तव्य है, राष्ट्रवाद का धर्म ।
सर्वधर्म सम्भाव का, छुपा रखा जो मर्म ।।


हिन्दी हिन्दू हिन्द का, होता रहा जब क्षीण ।
होता ना क्यों कर यहां, राष्ट्रवाद बलहीन ।।

आखिर किस आथार पर, बना हिन्द अरु पाक ।
आखिर किसने है किया, राष्ट्रवाद को खाक ।।


करते रहिये काम

देखे कई पड़ाव हम, निज जीवन के राह ।
कितने ढ़ाल चढ़ाव हैं, पाया किसने थाह ।।

लोभ-मोह अरु स्वार्थ का, माया ठगनी नाम ।
प्रीत-प्रेम उपकार ही, रचे जगत सत धाम ।।

बेटा तुझको क्या समझ, पैसों का परिताप ।
खून-पसीना बेच कर, पैसा लाता बाप ।।

मोटर गाड़ी बंगला, और बैंक बैलेंस ।
छोड़ बड़ा संतोष धन, सभी इसी के फैंस ।।

राग द्वेश को छोड़ कर, करते रहिये काम ।
कर्म हस्तगत आपके, हस्त नहीं परिणाम ।।

आज की शिक्षा नीति

शिक्षा माध्यम ज्ञान का, नहीं स्वयं  यह ज्ञान ।
ज्ञान ललक की है उपज, धर्म मर्म विज्ञान ।।
धर्म मर्म विज्ञान, सरल करते जीवन पथ ।
शिक्षा आज व्यपार, चले कैसे जीवन रथ ।।
करे कैरियर खोज, आज फैशन में शिक्षा ।
मृत लगते संस्कार, आज मिलते जो शिक्षा ।।
-रमेश चौहान

ईश प्रार्थना

ईश्वर से कुछ मांगना, प्रश्न बनाता एक ।
जग व्यापक सर्वज्ञ है ? या हम किये कुटेक ??
(कुटेक=अनुचित मांग)

क्या मांगू प्रभु आप से, जब रहते हो साथ ।
चिंता मैं क्यों कर करूं, जो पकड़े हो हाथ ।।

मेरे अनभल बात को चित्त धरें ना नाथ ।
मेरा मन तो स्वार्थ में, करे बात अकराथ ।।

सुख में विस्मृत कर गया, दुख में रहा न आस ।
कसे कसौटी आप जब, भूल गया यह दास ।।

श्रद्धा अरु विश्वास के, लिये सुमन प्रभु हाथ ।
अर्पण करुँ मैं आपको, मुझको करें सनाथ ।।

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