अपने समाज देश के, करो व्याधि पहचान ।
रोग वाहक आप सभी, चिकित्सक भी महान ।।
रिश्वत देना कोय ना, चाहे काम ना होय ।
बने घाव ये समाज के, इलाज करना जोय ।।
भ्रष्टाचार बने यहां, कलंक अपने माथ ।
कलंक धोना आपको, देना मत तुम साथ ।।
रूकता ना बलत्कार क्यों, कठोर विधान होय ।
च्रित्र भय से होय ना, गढ़े इसे सब कोय ।।
जन्म भये शिशु गर्भ से, कच्ची मिट्टी जान ।
बन जाओ कुम्हार तुम, कुंभ गढ़ो तब षान ।।
लिखना पढना क्यो करे, समझो तुम सब बात ।
देश धर्म का मान हो, गांव परिवार साथ ।।
पुत्र सदा लाठी बने, कहते हैं मां बाप ।
उनकी इच्छा पूर्ण कर, जो हो उनके आप ।।
छलके थकान अंग पर, कंठ रहा है सूख ।
अधर नीर ले सांस भर, मिटा रही वह भूख ।।
श्रम देवी श्रृंगार कर, धारे आयुध हाथ ।
सृर्जित करने राह नव, पत्थर ढोती माथ ।।
नारी अबला होय ना, घर बाहर है नाम ।
चूल्हा चैका साथ में, करती वह सब काम ।।
संघर्षो से जूझना, भरत वंश पहचान ।
संघर्षो से जूझते, राम बने भगवान ।।
श्रम तो जीवन साध्य है, साधे सकल सुजान ।
श्रमफल मीठा होत है, चख लो आप महान ।।
महिला से जो होय ना, कठिन काज ना कोय ।
करती नारी सब काज अब, नर सम नारी सोय ।।
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-रमेशकुमार सिंह चौहान