‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है

विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

हम आजाद है रे (चोका)

कौन है सुखी ?
इस जगत बीच
कौन श्रेष्‍ठ है ?
करे विचार
किसे पल्वित करे
सापेक्षवाद
परिणाम साधक
वह सुखी हैं
संतोष के सापेक्ष
वह दुखी है
आकांक्षा के सापेक्ष
अभाव पर
उसका महत्व है
भूखा इंसान
भोजन ढूंढता है
पेट भरा है
वह स्वाद ढूंढता
कैद में पक्षी
मन से उड़ता है
कैसा आश्‍चर्य
ऐसे है मानव भी
स्वतंत्र तन
मन परतंत्र है
कहते सभी
बंधनों से स्वतंत्र
हम आजाद है रे ।

तरही गजल


खफा मुहब्बते खुर्शीद औ मनाने से,
फरेब लोभ के अस्काम घर बसाने से ।

इक आदमियत खफा हो चला जमाने से,
इक आफताब के बेवक्त डूब जाने से ।

नदीम खास मेरा अब नही रहा साथी,
फुवाद टूट गया उसको अजमाने से ।

जलील आज बहुत हो रहा यराना सा..ब
वो छटपटाते निकलने गरीब खाने से ।

असास हिल रहे परिवार के यहां अब तो
वफा अदब व मुहब्बत के छूट जाने से

दीपावली की शुभकामना (गीतिका छंद)

दीप ऐसे हम जलायें, जो सभी तम को हरे ।
पाप सारे दूर करके, पुण्य केवल मन भरे ।।
क्ष उर निर्मल करे जो, सद्विचारी ही गढ़े ।
लीन कर मन ध्येय पथ पर, नित्य नव यश शिश मढ़े ।

कीजिये कुछ काज ऐसा, देश का अभिमान हो  ।

श्रु ना छलके किसी का, आज नव अभियान हो ।
सीख दीपक से सिखें हम, दर्द दुख को मेटना ।
न पुनित आनंद भर कर, निज बुराई फ्रेकना ।।

शुभ  विचारी लोग होंवे, मानवी गुण से भरे ।
द्र कहावें सभी जन, मान महिला का करे ।

काम सबके हाथ में हो, भाग्य का उपकार हो ।
द रहे ना मन किसी के, एकता संस्कार हो ।।
नाम होवे देश का अब, दश्षप्रेमी लोग हों ।

लोकतंत्र करे अपील (छंदमाला)

दोहा
बड़े जोर से बज रहे, सुनो चुनावी ढोल ।
साम दाम सब भेद से, झुपा रहे निज पोल ।।

सोरठा
लोकतंत्र पर्व एक, सभी मनाओं पर्व यह ।
बने देश अब नेक,, करो जतन मिलकर सभी ।।

ललित
गंभीर होत चोट वोट का, अपनी शक्ति दिखाओं ।
जो करता हो काज देश हित, उनको तुम जीताओं ।।
लोभ स्वार्थ को तज कर मतदाता, अपना देश बनाओ।
हर हाथों में काम दिलावे, नेता ऐसा अजमाओ ।।

गीतिका
देश के वोटर सुनो अब, इस चुनावी शोर को ।
वोट करने के समय तुम, याद रखना भोर को ।।
राजनेता भ्रष्ट हों जो, ढोल उनका बंद हो ।
लोभ चाहे जितना दें, शक्ति अब ना मंद हो ।।

कुणडलियाँ
मतदाता इस देश के, सुन लीजिये पुकार ।
रीढ़ बनो तुम देश का, करने को उपकार ।।
करने को उपकार, देश हित नव पथ गढ़ने ।
छोड़ अभी निज काम, बढ़ाओ पग को बढ़ने ।।
सुन लो कहे ‘रमेश’, हमारी धरती माता ।
देश हमारा स्वर्ग, देवता है मतदाता ।।

-रमेश चौहान

गजल-मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले




मेरे माता पिता ही तीर्थ हैं हर धाम से पहले

चला थामे मैं उँगली उनकी नित हर काम से पहले

उठा कर भाल मै चिरता चला हर घूप जीवन का,

बना जो करते सूरज सा पिता हर शाम से पहले


झुकाया सिर कहां मैने कही भी धूप से थक कर,

घनेरी छांव बन जाते पिता हर घाम से पहले

सुना है पर कहीं देखा नही भगवान इस जग में

पिता सा जो चले हर काम के अंजाम से पहले

पिताजी कहते मुझसे पुत्र तुम अच्छे से करना काम
तुम्हारा नाम भी आएगा मेरे नाम से पहले

......................रमेश.....................

दोहावली

दोहे
ठहर न मन इस ठांव में, जाना दूसरे ठांव ।
ठाठ-बाट मिटते जहाँ, मिलते शीतल छांव ।।

तुम होगे हंसा गगन, काया होगी ठाट ।
मनुवा तुम तो हो पथिक , जीवन तेरा बाट ।

कर्मो की मुद्रा यहां, पाप पुण्य का  हाट ।।
 ले जायेगा साथ क्या, झोली भर ले छाट ।।

ले जाते उपहार हैं, कुछ ना कुछ उस धाम ।
कर्मों की ही पोटली, आते केवल काम ।।

दुख रजनी में है छुपा, सुख का सूर्य प्रकाश ।
कष्टों का पल काट ले, लिये भोर की आस ।।

हर प्राणी मेंं प्राण है , जैसे तेरे देह ।
निज सुख दुख,सम मानकर करें सभी से नेह ।।

-रमेश चौहान

6 कुण्डलियां

1.गणेश वंदना
विघ्न विनाश्‍ाक गणराज हे, बारम्बार प्रणाम ।
प्रथम पूज्य तो आप हैं, गणपति तेरो नाम ।।
गणपति तेरो नाम, उमा शिव के प्रिय नंदन ।
सकल चराचर मान, किये माँ-पितु का वंदन ।।
चरणन पड़ा ‘रमेश’, मान कर मन का शासक  ।
मेटें मेरे कष्ट, भाग्य जो विघ्न विनाशक ।।

2. सरस्वती वंदना
वीणा की झंकार से, भरें राग उल्लास ।
अज्ञानता को नाश कर, देवें ज्ञान उजास ।।
देवें ज्ञान उजास, शारदे तुझे मनाऊँ ।
ले श्रद्धा विश्वास, चरण में भेट चढ़ाऊँ ।।
चरणन पड़ा ‘रमेश‘, दया कर मातु प्रवीणा ।
दूर  करें अज्ञान, छेड़ कर अपनी वीणा।।

3. मंजिल
मंजिल छूना दूर कब, चल चलिए उस राह ।
काम कठिन कैसे भला, जब करने की चाह ।
जब करने की चाह, गहन कंटक पथ आवे ।
करे कौन परवाह, कर्मगति मनवा भावे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बनो सब बिधि तुम काबिल ।
जीवन में कर कर्म,, कर्म पहुंचाए मंजिल ।।


4. हिन्दी
हिन्दी बेटी हिन्द की, ढूंढ रही सम्मान ।
शहर नगर हर गाँ में, धिक् धिक् हिन्दुस्तान ।
धिक् धिक् हिन्दुस्तान, दासता छोड़े कैसे ।
सामंती पहचान, बेड़ियाँ तोड़े कैसे।।
कह ‘रमेश‘ समझाय, बना माथे की बिन्दी ।
बन जा धरतीपुत्र, बड़ी ममतामय हिन्दी ।।


5.दादा पोता
दादा पोता हैं चले,  मन से मन को जोर ।
सांझ एक ढलता हुआ, दूजा नवीन भोर ।।
दूजा नवीन भोर, उमंगे नई जगावे ।
ढलता वह तो सांझ, धूप का स्वाद बतावे ।।
मध्य निशा घनघोर, डरावन होते ज्यादा ।
भेदे कैसे रात, राज खोले हैं दादा ।।


6.    महंगाई
बढ़े महंगाई यहां, धर सुरसा परिधान।
परख रहे हमको खरा , कौन बने हनुमान ।।
कौन  बने हनुमान, सेतु डालर जो लांघे ।
क्यों रूपया कमजोर, इसे तो कोई बांधे  ।।
सुझता नही ‘रमेश्‍ा‘, जिंदगी कैसे गढें।
दाल भात का भाव, यहां जब ऐसे बढ़े ।।

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