‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

सुसुप्त वह स्वाभिमान (अतुकांत)

अतुकांत हाथ में कटोरा हो ना हो, भीख मांग रहे सभी, कोई मंदिर मस्जिद द्वारे बैठ कोई घर-घर दे दस्तक कोई स्टेशन में हाथ फैलाय कोई सरकार से छाती ठोक मुफ्त बिजली पानी मुफ्त राशन मांगे खुद को गरीब कह कह धनवान भी मांग रहे छूट छूट आयकर से छूट इस कर से छूट, उस कर से छूट मेहनती किसान भी मांग रहे सब्सीड़ी में खाद सब्सीड़ी में कृषि औजार गांव-गांव गरीबी रेखा के...

बढ़े चलो (दोहे)

सम्हल कर चल तू जरा, अपनो से है बैर । द्वेष राग मन में भरा, कौन मनावें खैर ।। तन्हा आया है जहां, साथी है संसार । अपनी यात्रा पूर्ण कर, जाना तन्हा यार । बढ़े चलो निज राह पर, हिम्मत भरकर बाॅंह । तेज धूप को देख कर, ढूंढ़ों मत जी छाॅह ।। आप और मैं एक है, ना चाकर ना कंत । बहरा बनकर तू सुने, आॅंख मूंद मैं संत ।। जन गण मन की गान से, गुंज रही आकाश । राष्ट्र...

अकेले ही खड़ा हूं

मैं चौक गया आईना देखकर परख कर अपनी परछाई मुख में झुर्री काली काली रेखाएं आंखों के नीचे पिचका हुआ गाल हाल बेहाल सिकुड़ी हुई त्वचा कांप उठा मैं नही नही मैं नही झूठा आईना है मेरे पिछे कौन सोचकर मैं पलट कर देखा चौक गया मैं अकेले ही खड़ा हूं काल ग्रास होकर...

सिपाही (मत्तगयंद सवैया)

प्राण निछावर को तुम तत्पर,भारत के प्रिय वीर सिपाही।दुश्मन को ललकार अड़े तुमअंदर बाहर छोड़ कुताही ।।सर्द निशा अरू धूप सहे तुम,देश अखण्ड़ सवारन चाही ।मस्तक उन्नत देश किये तब,मंगल जीवन लोग निभाही ...

जीवन (चोका)

1. ढलती शाम दिन का अवसान देती विराम भागम भाग भरी दिनचर्या को आमंत्रण दे रही चिरशांति को निःशब्द अव्यक्त बाहें फैलाय आंचल में ढक्कने निंद में लोग होकर मदहोश देखे सपने दिन के घटनाएं चलचित्र सा पल पल बदले रोते हॅसते कुछ भले व बुरे वांछित अवांछित आधे अधूरे नयनों के सपने हुई सुबह फिर भागम भाग अंधड़ दौड़ जीवन का अस्तित्व आखीर क्या है मृत्यु के शैय्या पर सोच...

प्रीत के दोहे

मेहंदी तेरे नाम की, रचा रखी है हाथ । जीना मरना है मुझे, अब तो तेरे साथ ।। रूठी हुई थी भाग्य जो, मोल लिया जब शूल । तेरे कारण जगत को, मैंने समझी धूल ।। तेरी मीठी बात से, हृदय गई मैं हार । तेरी निश्चल प्रीत पर, तन मन जाऊॅ वार ।। देखा जब से मैं तुझे, सुध बुध गई विसार । मीरा बन मैं श्याम पर, सब कुछ किया निसार ।। खोले सारे भेद को, मेरे दोनों नैन । नहीं...

लोकतंत्र का कमाल देखो (सार छंद)

 लोकतंत्र का कमाल देखो, हमसे मांगे नेता । झूठे सच्चे करते वादे, बनकर वह अभिनेता ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, रंक द्वार नृप आये । पाॅंच साल के भूले बिसरे, फिर हमको भरमाये ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, नेता बैठे उखडू । बर्तन वाली के आगे वह, बने हुये है कुकडू ।। लोकतंत्र का कमाल देखो, एक मोल हम सबका । ऊॅंच नीच देखे ना कोई, है समान हर तबका ।। लोकतंत्र...

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