‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

सावन (गीतिका छंद)

हर हर महादेव ..................... माह सावन है लुभावन, वास भोलेनाथ का । आरती पूजा करे हम, व्रत भी भोलेनाथ का ।। लोग पार्थिव देव पूजे, नित्य नव नव रूप से । कामना सब पूर्ण करते, ले उबारे कूप से ।। -रमेशकुमार सिंह चौह...

सावन

ये रिमझिम सावन, अति मन भावन, करते पावन, रज कण को । हर मन को हरती, अपनी धरती, प्रमुदित करती, जन जन को । है कलकल करती, नदियां बहती, झर झर झरते, अब झरने । सब ताल तलैया, डूबे भैया, लोग लगे हैं, अब डरने ।। -------------------------------------------------------- -रमेशकुमार सिंह चौह...

दोहे -रूपया ईश्वर है नही

काम काम दिन रात है, पैसे की दरकार । और और की चाह में, हुये सोच बीमार ।। रूपया ईश्वर है नही, पर सब टेके माथ । जीवन समझे धन्य हम, इनको पाकर साथ ।। मंदिर मस्जिद देव से, करते हम फरियाद । अल्ला मेरे जेब भर, पसरा भौतिक वाद ।। निर्धनता अभिशाप है, निश्चित समझे आप । कोष बड़ा संतोष है, मत कर तू संताप ।। धरे हाथ पर हाथ तू, सपना मत तो देख । करो जगत में काम...

मेरे नगर नवागढ़ में बाढ़ का एक दृश्य

गीतिका छंद  ............................................. मेघ बरसे आज ऐसे , मुक्त उन्मुक्त सा लगे । देख कर चहु ओर जल को, देखने सब जा जुटे ।। नीर बहते तोड़ तट को, अब लगे पथ भी नदी । गांव घर तक आ गया जल, है मची कुछ खलबली ।। हाट औ बाजार में भी, धार पानी की चली । पार...

दोहे

लाभ हानि के प्रश्न तज, माने गुरु की बात । गुरु गुरुता गंभीर है, उलझन झंझावात ।। सीख सनातन धर्म का, मातु पिता भगवान । जग की चिंता छोड़ तू, कर उनका सम्मान ।। पढ़े लिखे हो घोर तुम, जो अक्रांता सुझाय । निज माटी के सीख को, तुम तो दिये भुलाय ।। अपनी सारी रीतियां, कुरीति होती आज । परम्परा की बात से, तुमको आती लाज  ।। इतने ज्ञानी भये तुम, पूर्वज...

रहना तुम सचेत (रोला छंद)

मेरे अजीज दोस्त, अमर मै अकबर है तू । मै तो तेरे साथ, साथ तो हरपल है तू ।। रहना तुम सचेत, लोग कुछ हमें न भाये । हिन्दू मुस्लिम राग, छेड़ हम को भरमाये ।। मेरे घर के खीर, सिवइयां तेरे घर के । खाते हैं हम साथ, बैठकर तो जी भर के ।। इस भोजन का स्वाद, लोग वो जान न पाये । बैर बीज जो रोप, पेड़ दुश्‍मनी का लगाये ।। रहना तुम सचेत .... यह तो भारत देश्‍ा, लगे...

सर्कस

खेल सर्कस का दिखाये, ले हथेली प्राण को । डोर पथ पर चल सके हैं, संतुलित कर ध्यान जो ।। एक पहिये का तमाशा, जो दिखाता आज है । साधना साधे सफलतम, पूर्ण करता काज है ।। काम जोखिम से भरा यह, पेट खातिर वह करे । अंर्तमन दुख को छुपा कर,हर्ष सबके मन भरे ।। लोग सब ताली बजाते, देख उनके दांव को । आवरण देखे सभी तो, देख पाये ना घाव को ।। ये जगत भी एक सर्कस, लोग...

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