‘नवाकार’

‘नवाकार’ हिन्दी कविताओं का संग्रह है,विशेषतः शिल्प प्रधन कविताओं का संग्रह है जिसमें काव्य की सभी विधाओं/शिल्पों पर कविता प्राप्त होगीं । विशषेकर छंद के विभिन्न शिल्प यथा दोहा, चौपाई कवित्त, गीतिका हरिगीतिका, सवैया आदि । जपानी विधि की कविता हाइकु, तोका, चोका । उर्दु साहित्य की विधा गजल, मुक्तक आदि की कवितायें इसमें आप पढ़ सकते हैं ।

Nawakar

Ramesh Kumar Chauhan

आखिर क्यों ??

देर है अंधेर नहीं जन्म से अब तक सुनते आ रहे हैं एक प्रश्न छाती तान कर खड़ा है न्याय में देरी होना क्या न्याय हैं ? एक प्रश्न खड़ा  है आरोपियों को दोषियों की तरह सजा क्यों दी जाती है ? क्या सभी आरोपी दोषी सिद्ध होते है ? यदि हां तो वर्षों तक कोर्ट का चक्कर क्यों ? यदि नहीं तो आरोपी के अनमोल वर्ष जो जेल में बीते, दुख अपमान कष्ट में बीते, उन...

तीन तरह के लोग

होते सकल जहान में, तीन तरह के लोग । एक समय को भूल कर, भोग रहे हैं भोग ।। भोग रहे हैं भोग, जगत में असफल होकर । कोस रहें हैं भाग्य, रात दिन केवल सो कर ।। एक सफल इंसान, एक पल ना जो खोते । कुछ ही लोग महान, समय से आगे होते । ...

कुछ दोहा

सहन करें हम कब तलक, आतंकी बकवास । नष्ट मूल से कीजिये, आये सबको रास ।। राम दूत हनुमान को, बारम्बार प्रणाम । जिसको केवल प्रिय लगे, राम-राम का नाम । अर्पण है हनुमान प्रभु, राम-राम का नाम । संकट मोचन आप हो, सफल करे हर काम।। फसी हुई है जाल में, हिन्दी भाषा आज । अॅग्रेजी में रौब है, हिन्दी में है लाज ।। लोकतंत्र के तंत्र सब, अंग्रेजी के दास...

कुछ दोहे

एक पहेली है जगत, जीवन भर तू बूझ ।सोच सकारात्मक लिये, तुम्हे दिखाना सूझ ।। अपनी भाषा में लिखो, अपने मन की बात ।हिंदी से ही हिंद है, जिसमें प्रेम समात ।। गद्दारों की गद्दारी से , बैरी है मुस्काए ।गद्दारों को मार गिराओ , बैरी खुद मर जाए ।। राधा-माधव प्रेम का, प्रतिक हमारे देश ।फिर भी दिखते आज क्यों, विकृत प्रेम का वेश ।। नहीं चाहिये प्रेम...

आस्था

मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे का संत फकीर गुरु पैगंबर ईश्वर का अस्तित्व है केवल मेरी मान्यता से जिससे जन्मी  है मेरी आस्था  । मेरी आस्था किसी अन्य की आस्था से कमतर नहीं है न हीं उनकी आस्था मेरी आस्था से कमतर है फिर भी लोग क्यों दूसरों की आस्था पर चोट पहुंचाकर खुद को बुद्धिजीवी कहते हैं । मुझे अंधविश्वासी कहने वाले खुद पर झांक कर देखें ...

हर सवाल का जवाब एक सवाल

हर सवाल के जवाब से पैदा होता है एक नया सवाल जिसका जवाब पैदा करता है पुन: एक नया सवाल सवालों के जवाबों का चल पड़ता है लक्ष्यहीन भटकाव इसमें ठहराव तब आता है जब सवाल का जवाब एक सवाल ही हो क्योंकि हर सवाल का जवाब केवल एक सवाल होता है...

जीने की कला

जग में जीने की कला,  जग से लेंवे सीख । जीवन जीने की कला, मिले न मांगे भीख  ।। मिले न मांगे भीख,  सफलता की वह  कुंजी । व्यक्ति वही है सफल,  स्वेद श्रम जिनकी पूंजी ।। चलते रहो "रमेश",  रक्त बहते ज्यो  रग में । चलने का यह काम, नाम है जीवन जग में ...

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