नव अंग्रेजी वर्ष में, युवा मस्त हैं हिंद ।
भारतीय परिवेश को, भूल आंग्ल के बिंद ।।
भूल आंग्ल के बिंद, दासता किसको कहते ।
तज अपनी पहचान, दासता में ही रहते ।
तजे देह जब श्वास, नाम होता उसका शव ।
वैचारिक परतंत्र, दासता गढ़ते नव ।।
भारतीय परिवेश को, भूल आंग्ल के बिंद ।।
भूल आंग्ल के बिंद, दासता किसको कहते ।
तज अपनी पहचान, दासता में ही रहते ।
तजे देह जब श्वास, नाम होता उसका शव ।
वैचारिक परतंत्र, दासता गढ़ते नव ।।